बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

पुणे ब्लास्ट और मीडिया की अमन की आशा

इतवार सुबह कंपनी के कॉलीग्स के साथ सुबह ट्रेकिंग पर भीमा शंकर जाना तय हुआ था अगली सुबह तड़के पुणे स्टेशन पर मीटिंग पॉइंट था इसलिए ऑफिस का दोस्त मेरे यहाँ रुका था, इसलिए फर्स्ट एड किट के ज़रूरी सामान खरीदने मार्केट जाना हुआ. खरीददारी कर हम जैसे ही घर जाने के लिए मुड़े , पिताजी का भोपाल से फ़ोन आ गया कि पुणे की बेकरी में धमाका हो गया है. मैने सोचा कि यूँ ही कोई छोटी मोटी घटना हुई होगी , घर पहुँचते हुए कुछ पुलिस की गाड़ियाँ तेज़ी से होलकर ब्रिड्ज की तरफ जाते हुए दिखीं लेकिन तब भी यह एहसास नहीं हुआ कि मामला गंभीर है.

घर पहुँच कर कल की तैयारी में लग गया फिर मेस से खाना खा कर जब घर ९ बजे लौट कर जब टीवी खोला तो दिल दहल गया. शाम साढ़े छ: बजे के क़रीब जर्मन बेकरी में ब्लास्ट हो गया और ८ लोग मारे गए ... कुछ सोचने समझने के पहले ही सेलफोन बजने लगा , खबर देखते देखते कॉल रिसीव किया पटना से दोस्त के घर से फ़ोन ख़ैरियत पूछने आया , दोस्त भी बदहवास सा बाल्कनी की तरफ भागा , और इधर मेरे फ़ोन पर भी कॉल आने शुरू हो गये .... जवाब देते देते मुझे यह एहसास हुआ कि हालात बहुत ही गंभीर हैं क्यूंकी मुझे भी घटना की ठीक ठीक जानकारी नही थी इसलिए जल्दी जल्दी अपना हेल्थ अपडेट देते हुए कॉल निबटाए. जाहिर है स्थिति को देखते हुए अगले दिन का प्रोग्राम रद्द हो गया.

आइए आपको पुणे शहर से अवगत करा दूं :-

१. पुणे महाराष्ट्र में मुंबई के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है जहाँ ऑटो मोबाइल , मॅन्यूफॅक्चरिंग और सॉफ्टवेर कंपनीज के चलते देश विदेश के कई लोग काम करते हैं.


२. पुणे अध्यात्मिक रूप से भी विश्व में मशहूर है , ओशो कम्यून , गणेश जी के दगड़ू सेठ और कसबा तथा अष्टविनायक मंदिर , माता का चतु: शृंगी मंदिर की वजह से श्रद्धालुओं की हमेशा यहाँ भीड़ रहती है.

३. सांस्कृतिक कार्यक्रम यहाँ साल भर चलते रहते हैं और गीत संगीत नाट्य और नृत्य कला की यहाँ सालों पुरानी परंपरा है.

४. सह्यद्रि पर्वत शृंखला और समुद्रि किनारों से नज़दीक़ी के चलते पुणे शहर के आस पास साइट सीयिंग की कई जगहें हैं जहाँ देश विदेश के पर्यटक आते हैं.

५. दुनिया भर में मशहूर सिंबी ( सिमबाइयोसिस) मेनेजमेंट इन्स्टिट्यूट , एफ टी आई आई , सी ओ ई पी , फ़र्गुसन कौलेज , भारती विद्या पीठ , डी वाई पाटिल इनस्टिट्यूट्स और पुणे विश्वविद्यालय होने के कारण देश विदेश के कोने कोने से छात्र यहाँ विभिन्न डिसिप्लिन में पढ़ने आते हैं .

६. मगर पट्टा , हिनजेवाडी , तलवडे , चाकन , कल्याणी नगर जैसे सेज में १०० के करीब देशी और एमेरिकन , फ्रेंच , ब्रिटिश , जर्मन तथा इजराइली कंपनियों के ऑफ्षोवर डेवलपमेंट सेंटर्स और मॅन्यूफॅक्चरिंग प्लॅंट्स हैं.

७. पुणे सेना के दक्षिणी कमांड का मुख्यालय भी है .

८. पुणे का अपना शताब्दियों पुराना गौरवशाली इतिहास है .

९. पुणे महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी है जैसे उत्तरप्रदेश की वाराणसी और मध्यप्रदेश का उज्जैन.

पुणे शायद भारत का अकेला शहर है जिसे विद्या का मायका कहा जाता है. जाहिर है इतनी सारी खूबियों के होते और यहाँ के कॉज़्मो पौलिटन कल्चर के चलते यह दुनिया भर के आई टी प्रेफेशनल्स , स्टूडेंट्स , कलाकारों और इतिहास प्रेमियों का पसंदीदा शहर है.

किंतु १३ फ़रवरी की शाम को दहशत का जो नंगा नाच कोरे गाँव पार्क की जर्मन बेकरी में हुआ उससे पुणे शहर की शान में बट्टा लग गया.

पुणे में जनरल अरुणकुमार वैद्य की हत्या के बाद यह पहली आतंकवादी कार्यवाही है. और इस लिहाज़ से खास है कि इंटेलीजेंस की पूरी इन्फर्मेशन महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय और मुख्यमंत्री को होने के बावजूद २६/११ के बाद देश मे हुई यह दूसरी बड़ी आतंकवादी घटना है . कुछ और मुद्दे हैं जो महाराष्ट्र सरकार के सुरक्षा संबंधी दावों की पोल खोलते हैं.

१. यह संयोग नही कि ऐसे हमले तभी होते हैं जब राज्य में गैर मराठी लोगों के खिलाफ राजनैतिक पार्टियाँ बयानबाज़ी करतीं हैं.

२। १३ तारीख पर आतंकवादी हमला करना आतंकवादियों की सोची समझी चाल लगती है , इससे पहले दिल्ली में १३ सितंबर २००८ , १३ मई २००८ को जयपुर और २६ जुलाई २००८ को अहमदाबाद में बम धमाके हुए जिसमे बड़ी संख्या में लोग मारे गए। २६ नवंबर २००८ को जो हमला हुआ उसमे खास बात यह है की २६ भी १३ का मल्टीपल है।


३. यह हमले उस समय हुए हैं जबकि एक हफ़्ता पहले कांग्रेसी युवराज मुंबई की यात्रा पर आए थे और उत्तर भारतीयों को यह संदेश दे गये थे कि उनके लिए सुरक्षित है. यह साफ़ है कि कांग्रेस का सुरक्षा संबंधी दावा कितना झूठा है.


४. यह २६ नवंबर २००८ के हमलों से इस मायने में समानता रखते हैं कि तब भी आतंकवादियों ने ज्यू स्यनोगॉग पर हमला किया था , जहाँ जर्मन बेकरी स्थित हैं वहाँ से ज्यू प्रार्थना स्थल पास ही में स्थित है.

५. यह हमला निश्चित रूप से विदेशियों पर केंद्रित था ताकि उन्हे भारत आने से डराया जा सके और भारत के पर्यटन व्यवसाय पर सीधी चोट की जा सके.


६. इसी फ़रवरी माह में भारत पाक वार्ता शुरू होनी है जिसे साबोटज करने के लिए यह धमाका किया गया .

७. इसी फ़रवरी के अंत में हॉकी विश्वकप भारत में खेला जाना है जिसमे विदेशी टीमें आएँगी , इसके साथ ही साथ आई पी एल -३ और बाद में कॉंमान वेल्थ खेल होने हैं , ऐसे में धमाके कर विदेशियों को डराना आतंकवादियों की सोची समझी साज़िश लगती है.


८. गृहमंत्री आर. आर. पाटिल जी के होते हुए यह दूसरा हमला है , उन्होने इतनी सावधानी ज़रूर बरती की हमले के बाद वे मीडिया से मुखातिब नही हुए , दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है.


९. यह धमाका उस समय हुआ है जब देश में लोग शाहरुख ख़ान और उसके कथित ' मुस्लिम विक्टिमाइज़ेशन' को दिखाती फिल्म से सहानुभूति जाता रहे थे.


१०. टाइम्स प्रायोजित 'अमन की आशा' कार्यक्रम को शुरू हुए दो हफ्ते नहीं बीते की अमन की आशाएं तार तार हो गयीं.


११. ख़ान की फिल्म के प्रदर्शन के लिए पूरे राज्य का पुलिसिया अमला सतर्क किया गया जिससे आतंकवादियों को यह नापाक हरकतें करने में कामयाबी मिली


१२। महाराष्ट्र में कांग्रेसी सरकार के १०० दिन पूरे होते होते यह हादसा हो गया , इससे पहले महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता प्रदेश में क़ानून व्यवस्था को ले कर अपनी पीठ आप थपथपा कर मुँह मियाँ मिट्ठू बन रहे थे.


१३. देश में जिस प्रकार ठाकरे के पाकिस्तान विरोध को लेकर मीडिया में जैसी फब्तियाँ कसी जा रही थी , अब सबकी बोलती बंद है 'माइ नेम इज़ ख़ान' को ५ में से ४ स्टार रेटिंग देने वाले टाइम्स समूह को अपनी अमन की आशा प्रोग्राम की दुर्गति देखी नही जा रही. १३ तारीख को ही प्रकाशित तमाम अख़बारों ने ठाकरे को देश का दुश्मन बताया था


साफ तौर पर यह इंटेलीजेंस फेल्यूर है गृहमंत्री चिदंबरम जी चाहे जितना कहें लेकिन जानकारी होने के बावजूद यदि राज्य सरकार उसे गंभीरता से लेने के बजाए एक फालतू फिल्म के प्रदर्शन को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना ले तो यह और कुछ नहीं सरकार का निकम्मा पन है.

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सुबह घर से ऑफिस जाते हुए इस बात का भरोसा नही है कि शाम को ज़िंदा लौटेंगे , अब से रेस्टौरेंट्स , पार्क , माल्टाइपलेक्स रिक्रियेशन सेंटर्स और सार्वजनिक जगहों पर जाते हुए कांप जातें हैं.

शायद डर का यह एहसास इस शहर के लिए नया है लेकिन अब इस एहसास के साथ जीने की आदत हमें डाल लेनी पड़ेगी.

सच तो यह है कि सरकार के अजेंडे में नागरिकों की सुरक्षा का कोई स्थान ही नही है आज संसद हमले को १० साल होने आएँ हैं अफ़ज़ल गुरु आज भी मज़े कर रहा है , मुंबई हमले को डेढ़ साल होने आए हैं मामला ज़रा भी आगे नही बढ़ा और भारत में सबसे सुरक्षित आज कोई आम भारतीय या मंत्री संतरी न हो कर पाकिस्तानी क़साब है जो हर सुनवाई में पचास दफे अपने बयान बदलता है और भारत का क़ानून उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार देता है.

आम भारतीय जनता को भी इससे कोई सरोकार नही है तभी बार बार होते आतंकवादी हमलों के बावजूद कांग्रेसी जीत कर लोकसभा में आते हैं . कभी कभी तो लगता है जैसे हमें अपने प्रशासन और सरकार को पश्चिमी देशों को आउट सोर्स कर देना चाहिए , क्योंकि चाहे जिस किसी की सरकार हो वह आम भारतीय को सुरक्षा की गारंटी तो दे ही नही सकती

2 टिप्‍पणियां:

  1. शायद डर का यह एहसास इस शहर के लिए नया है लेकिन अब इस एहसास के साथ जीने की आदत हमें डाल लेनी पड़ेगी.

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  2. पाकिस्तान को दोस्त और से बातचीत करने वाले लोग अब क्यों कोई बयान नहीं दे रहे.

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