आजकल फिल्मों से ज़्यादा नौटंकियों की सक्रीनिंग में ज़्यादा भीड़ जुटती है और तमाम तरह की ब्यानबाज़ी के साथ साथ खूब लानात मलामत होती है.
अपने पिछले लेख "अबू आज़मी की मनसे नौटंकी" लिखते वक़्त मुझे इस बात का अंदेशा था कि मीडियावालों और कांग्रेसी नेताओं और सांस्कृतिक भाषाई झंडाबरदारों का मन नौटंकी से इतनी जल्दी भर नही सकता . और लीजिए महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने नयी नौटंकी का प्रदर्शन कर दिया.
पिछले शुक्रवार को कांग्रेसी युवराज महामहिम राहुल गाँधी साहब मुंबई तशरीफ़ लाए , मुंबई लोकल ट्रेन में भारी पुलिसिया पहरे में घाटकोपर से अंधेरी संधेरी सफ़र किया , पाँच कि। मी। की मामूली दूरी बजाए अपने पैरों से तय करने के सरकारी ऊडन खटोले में तय करी और बिना कुछ किए पूरी उत्तर भारतीय जनता के बीच हीरो बन गए!
यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि शिवसेना ने इनका विरोध किया और काले झंडे दिखाए , लेकिन मीडिया ने हमेशा की तरह अपने पगलाए अंदाज़ में जोशो ख़रोश के साथ इसे कांग्रेसी युवराज की जीत बताया.
खूब बयानबाज़ी हुई शिवसैनिकों - कांग्रेसियों की मार पिटाई हुई और हमेशा की तरह असल मुद्दों से ध्यान बँटाया गया.
इस शुक्रवार को नौटंकी का सीक्वल हुआ एक 'बिलो अवेरेज़ थर्ड रेट' ' सो कॉल्ड फील गुड' 'कॅंडी फ्लॉस' सिनिमाई विधा के जनक शाहरुख ख़ान और करण जोहर की फिल्म "माई नेम इज़ ख़ान" के ज़रिए.
माई नेम इज़ ख़ान कई मामलों में अलग है आइए इस पर नज़र डालें
१). माई नेम इज़ ख़ान धर्म प्रोडक्शन और गौरी ख़ान की पहली ऐसी फिल्म है जो साथ मिल कर बनाई गयी है.
२). यह धर्म प्रोडक्शन की पहली ऐसी 'बड़ी' फिल्म है जो इसके संस्थापक यश जोहर की मौत के बाद प्रदर्शित की जा रही है.
३). यह कभी अलविदा न कहना के बाद करण जोहर द्वारा निर्देशित पहली फिल्म है.
४). इस फिल्म के ज़रिए करण जोहर ४ सालों बाद किसी फिल्म का निर्देशन किया जा रहा है.
५). बिल्लू और पहेली के पिटने तथा वाहियात ओम शांति ओम और मैं हूँ ना जैसी फिल्मों के हिट होने बाद निर्माता गौरी ख़ान और अभिनेता शाहरुख ख़ान की यह ताज़ा फिल्म है.
६). काल और कुर्बान के पिटने के बाद यह फिल्म धर्म प्रोडक्शन की हालिया रिलीज़ फिल्म है.
७) कुर्बान के बाद धर्म प्रोडक्शन की यह दूसरी ऐसी फिल्म है जिसमे मुसलमानों को विक्टिमाइज़ कर जनता की हमदर्दी लूट कर पैसे कमाने की सोची गयी है.
८). मैं हूँ ना के बाद यह पहली ऐसी फिल्म है जिसकी रिलीज़ के पहले शाहरुख ख़ान ने पाकिस्तानी लोगों से अपनी हमदर्दी दिखाई है.
९). इस फिल्म के ज़रिए काजोल और जरीना वहाब जैसी वेट्रेन हीरोइनें फिल्मी दुनिया में वापसी कर रहीं है.
१०). वांटेड, कुर्बान और थ्री ईडियट्स के बाद यह हालिया रिलीज़ 'ख़ान' फिल्म है , जिससे फिल्म उद्योग को बड़ी उम्मीदें हैं.
११). कॅंडी फ्लॉस सिनेमाई विधा से हटकर यह पहली बार है जब करण जोहर कुछ नया करने जा रहे हैं.
१२). पिछले साल वांटेड और थ्री ईडियट हिट हुईं वहीं शाहरुख अभिनीत बिल्लू बुरी तरह पीटी.
१३). पिछले साल आई पी एल में कोलकाता नाइट राइडर के बुरी तरह हारने के बाद से यह शाहरुख ख़ान साहब की पहली प्रदर्शित फिल्म है.
१४). इस फिल्म के रिलीज़ के बाद जल्द ही आई पी एल शुरू होने जा रहा है.
जाहिर है जब ऐसी कुछ बातें आपके खिलाफ जा रहीं हो तो आप कुछ 'नया' करने की सोचते हैं इसी कारण फिल्म के प्रोड्यूसर्स ने काजोल और जरीन वहाब जैसी अभिनेत्रियों को लिया और फिल्म के प्रचार के लिए तमाम हत्कंडे अपनाए जैसे:-
१) नेवॉर्क एरपोर्ट पर शाहरुख की सुरक्षा जाँच के दौरान उनका डिटेन्षन और सुरक्षा कर्मियों द्वारा शाहरुख का 'ख़ान' नाम होने के कारण कथित रूप से दुर्व्यवहार.
२). शाहरुख का पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ हमदर्दी जाहिर करना.
३). जान बूझ कर मुस्लिम विक्टिमाइज़ेशन और दुनिया में कथित 'मुस्लिम पर्सिक्यूशन' को बढ़ावा दे कर राजनैतिक पार्टियों से पंगा लेना
४). फिल्म के रिलीज़ के ठीक कुछ दिन पहले शाहरुख का यह बताना कि लंडन के हेत्रोव एरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच के दौरान महिला सुरक्षा कर्मियों ने बॉडी स्कॅनर के ज़रिए उनकी नग्न तस्वीर उतारीं और इसे दुनिया भर में पब्लीश किया.
यह तरीके कुछ ऐसे हैं जिसके ज़रिए शाहरुख ख़ान साहब ने भोली भली जनता की हमदर्दी लूट कर रियाल लाइफ में 'हीरो' बनने की कोशिश की है जिसमे वह औंधे मुँह गिरे हैं.
कहना न होगा कि कुछ अख़बारों ने फिल्म देख कर ऐसे रिव्यू दिए हैं जिन्हे पढ़ कर वे पेड़ रिव्यू सरीखें लगते हैं.
कुछ अख़बारों ने यह लिखा है की फिल्म हाउस फूल चल रही है और फिल्म देखने के लिए लोग मरे जा रहे हैं.
कुछ अख़बार लिखते हैं की फिल्म ने सफलता के पिछले सारे रेकॉर्ड तोड़ डाले हैं और यह अभिनेता शाहरुख का नेता ठाकरे को करारा जवाब है.
मगर साहब ... ज़रा इन तथ्यों पर नज़र डालने की कृपा करें
१). इस फिल्म का पहले दिन का कलेक्शन १००% बताया गया है लेकिन आप बॉलीवुड हंगामा या ग्लमशम जैसी फिल्म वेबसाइट देखें इसका पहले दिन का बॉक्स ऑफीस कलेक्शन मौजूद ही नही है. सच्चाई तो यह है कि शुक्रवार को शिवरात्रि की छुट्टी के बावजूद इसका कलेक्शन बमुश्क़िल ४०-४५% सदी है , जो किसी भी ख़ान फिल्म के लिहाज़ से काफ़ी खराब प्रदर्शन है.
२). यह फिल्म मुंबई में सभी सिनेमाघरों द्वारा दिखाए जाने का दावा किया जाता है , इस दावे की सच्चाई जानने के लिए मैने ऑनलाइन और फोन द्वारा बुकिंग करनी चाही --- पता लगा यह फिल्म कुछ सिनेमाघरों को छोड़ कर कहीं भी दिखाई नही जा रही.
३). पुणे औरंगाबाद और नासिक जैसे महाराष्ट्र के बड़े शहरों में यह न कल दिखाई गयी और न आज , बात की सच्चाई जानने के लिए आप खुद बिग सिनिमा और आई नॉक्स की वेबसाइट चेक करें .
४). फिल्म का म्यूज़िक पहले ही फ्लॉप हो चुका है. शंकर एहसान और लॉय जैसे मंझे हुए संगीतकारों के होते हुए भी फिल्म का संगीत कुछ खास नही रहा यही नही भारतीय गायकों के होते हुए फिल्म के प्रमुख गाने , शफाक़त अमानत अली ख़ान , अदनान समी और राहत फ़तेह अली ख़ान जैसे पाकिस्तानी गायकों से गवाए गये हैं जो आम तौर पर शंकर एहसान लॉय के लिए नही गाते.
५). फिल्म की पाइरेटेड डि वी डि पहले की बाज़ार में आ चुकी है जिसका प्रिंट पाकिस्तान और गल्फ में तैयार हुआ है. अंदाज़ा है कि पाइरेटेड प्रिंट्स फिल्म के कारोबार बार बुरा असर डालेंगे. फिल्म का संगीत पहले ही songs.pk नाम की पाकिस्तानी वेबसाइट इंटरनेट पर गैर क़ानूनी ढंग से जारी कर चुकी है तथा एफ एम पर इसके गीत पैसे दे कर बार बार बजाए जाते हैं ..... इस वजह से फिल्म का संगीत बाज़ार में खास नही बिका .
फिर यह फिल्म कैसे हिट हो गयी भैया ? यह सब क्या गोलमाल है? क्या यह पब्लिसिटी स्टंट नहीं? महाराष्ट्र की प्रमुख विपक्षी पार्टी सब काम काज छोड़ कर एक फालतू फिल्म का विरोध क्यूँ करेगी? सरकार ज़रूरी मुद्दों को छोड़ कर एक फिल्म की सक्रीनिंग के लिए पूरे राज्य की पुलिस फोर्स क्यूँ लगाएगी?
फिल्म का डिस्ट्रिब्यूशन फॉक्स सर्चलाइट पिक्चर्स कर रही है जिसकी पेरेंट कंपनी 20th सेंचुरी फॉक्स नामक जानी मानी एमेरिकन कंपनी है.
आई बात समझ में ? यह कंपनी भारतीय फिल्मोद्योग में अपने पैर जमाना चाहती है और इसका आगाज़ माइ नेम इज़ ख़ान के ज़रिए हो रहा है , जब हॉलीवुड की वॉरनर ब्रदर्स "चाँदनी चौक टू चाइना" का वितरण कर अपने हाथ जलाती है तो इसकी प्रतिद्वंदी कंपनी अपने बिज़नेस इंट्रेस्ट्स पर आँच क्यूँ आने देगी ????
जाहिर है जब फिल्म मुस्लिम दुनिया द्वारा झेले गए दुखों के बारे में बताती है और इसका विरोध एक हिंदू राष्ट्रवादी राजनैतिक पार्टी करती है तो विवाद पैदा होता है जिसके कारण सत्तारूढ़ पार्टी की ग़लत नीतियों और बढ़ती महँगाई से ध्यान हट कर फोकस में यह वाहियात फिल्म आती है , फिल्म को गुणवत्ता के चश्मे से नही देखा जाता बल्कि राजनैतिक पूर्वाग्रह के कारण देखा जाता है , लोगों में उत्सुकता बढ़ती है और अंतत: फिल्म हिट होने की
उम्मीद जगती है.
शिवसेना का विरोध का तरीका समझ नही आता यदि विरोध ही करना था तो बजाए सिनेमाघरों के बाहर चिल्ला चोट करने के वे दर्शकों में इसकी पाइरेटेड सी डी बाँटते जिससे फिल्म के बिजनेस पर सीधा फ़र्क़ पड़ता ... इससे उनकी इज़्ज़त भी रह जाती और फिल्म का विरोध भी हो जाता !
शाहरुख ख़ान का पाकिस्तानियों से हमदर्दी जताना और भी संदेह जगाता है यह दुनिया जानती है की पाकिस्तान भारतीय फिल्म और अन्य उत्पादों की पाइरसी का दुनिया में सबसे बड़ा अड्डा है लिहाज़ा पाकिस्तानियों को फिल्मों में या क्रिकेट टीम में शामिल करने से कहीं न कही देश के दुश्मनों के हाथ मज़बूत हो रहे हैं और भारतीय फिल्मोद्योग और संगीत तबाह हो रहा है.
एक फॉर्वर्डेड ई मैल के अनुसार पाकिस्तानी वेबसाइट songs.pk भारतीय गानों के पाइरेटेड वर्षन्स ऑनलाइन डाउनलोडिंग के लिए होस्ट करती है इसका एक दिन का रेवेन्यू १२ करोड़ रुपए हैं जिसे बतौर टॅक्स वह पाकिस्तानी सरकार को चुकाती है और भारतीय फिल्म कंपनी , और संगीत कंपनियों को सीधा चूना लगता है.
पाकिस्तान सरकार इस पैसे को भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगाती है , इस तरह पूरे भारतीय कलाकारों के वजूद पर संकट बन आया है.
यह दुख की बात है कि शाहरुख सहित तमाम फिल्मी हस्तियाँ पाइरसी के खिलाफ बोलती हैं लेकिन जाने अंजाने उन्हीं पाइरेट्स को मदद करतीं हैं
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
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बहुत अच्छा साहब। बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई। आपका धन्यवाद। मेरे भी विचार कुछ ऐसे ही हैं। धन्यवाद। समय मिले तो udbhavna.blogspot.com पर आईयेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विश्लेषण, इसमें से कुछ हिस्सा मैं अपने ब्लॉग पर भी डालना चाहता हूं…
जवाब देंहटाएंआपकी बाकी बातें तो समझ में नहीं आयीं लेकिन ये पिक्चर एकदम बोर थी...
जवाब देंहटाएंसुरेश जी आप नि: संकोच हो कर इस लेख का हिस्सा अपने ब्लॉग पर डालिए. वैसे ही मोहल्ला वालों की यह लेख पढ़ कर 'सुलग' चुकी है. :) , यह लेख आपके ब्लॉग पर प्रकाशित होगा तो कइयों तक यह बात पहुँचेगी कि 'माइ नेम इज़ ख़ान' की सफलता कितनी झूठी है. यहाँ पुणे में तो इसके शो खाली ही रहे , लोगों में इस बात का गुस्सा है की सरकार ने संवेदन शील स्थानों की सुरक्षा घटा कर इस वाहियात फिल्म का प्रदर्शन करना अधिक ज़रूरी समझा.
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