शनिवार, 2 मई 2009

देश में धार्मिक आज़ादी और अमरीकी चालबाज़ी

यह खबर है की दुनिया का स्वयंघोषित थानेदार 'अंकल सॅम' अमेरिका भारत में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के मामलों से जुड़ी हुई समिति भेज रहा है. गौरतलब है की ऐसा हालिया घटित उड़ीसा में ईसाई विरोधी हिंसा के आरोप में भारत सरकार द्वारा दिए गये 'जवाब' की जाँच पड़ताल के लिए किया जा रहा है. इस रिपोर्ट के पहले अमरीका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े आयोग ने शुक्रवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है की भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के हनन के मामले विगत वर्षों में बढ़ते जा रहे हैं और बहुसंख्यक हिंदू जनता अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई जनता के प्रति बैर भाव रखती है. रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का भी उल्लेख किया गया है जो अमरेकी सरकार द्वारा प्रतिबंधित एक मात्र ऐसे भारतीय व्यक्ति हैं जिन्हे अमरीका आने से रोका गया है.

अमरीका बताए की क्या खुद उनके देश में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नही हुआ है? उल्लंघन भी ऐसा की एक प्रतिष्ठित हिंदू व्यक्ति श्री 'राजन ज़ेड' के अमरीकी सेनेट में हिंदू प्रार्थना करने पर पग्लाई क्रसेडर्स की भीड़ ने उनके साथ गली गलौज और धक्का मुक्की की. यह सब होता है अमरेकी सेनेट में जहाँ अमरीकी जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि बैठते हैं. इतनी बड़ी बात के होने के बावजूद किसी सेनेटर ने 'खेद' व्यक्त नही किया और सुरक्षाकर्मी क्रुसेडर्स को भर निकालने में ख़ासी मशक्कत करते नज़र आए.

हैरत होती है यह बात जानकार की अमरीका जैसे मुल्क के भारत में आख़िर क्या हित हैं? विगत वर्षों की हिंसा में आख़िर कितने अमरीकी पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में मारे गये हैं? क्यूँ नही अमरीका इसकी जाँच के लिए टीम भेजता ? क्या इसलिए की अमरेकी सैनिक और नागरिक आज इराक़ , आफ्गानिस्तान या पाकिस्तान में जाने से डरते हैं? यहाँ भारत में गोरी चमड़ी वाले फिरंगों के प्रति मानसिक गुलामों में खास आकर्षण हैं इसलिए इन अमरीकियों को यह बात अची तरह मालूम है की यहाँ इनकी अच्छी आवभगत होगी , और अगर यह लोग 3-4 नसीहत देंगे तो हमारे सेक्युलर स्लम डॉग्स इसे माई बाप का आदेश मानकर इस पर अमल करेंगे. शायद मगसेसे पुरस्कार वाले या नोबेल विश्व शांति पुरस्कार वाले इनके किए गये "कामों" के लिए 2-4 पुरस्कार भी दे दें.

यह जान कर गुस्सा आता है की आख़िर भारत सरकार , अमरीका को जवाबदेह क्यूँ है? क्या 10 जनपथ या राष्ट्रपति भवन ने अमरीकी राजदूत को तलब कर भारतीय छात्रों और भारतवंशियों के खिलाफ अमरीका में हुई हिंसा के प्रति विरोष जताया ? विरोध तो दूर हमारे महान विद्वान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साहब तो मौका मिलने पर ओबामा के आगे नतमस्तक होने का मौका नही छोड़ेंगे . धिक्कार है ऐसी राज्य व्यवस्था पर जो विदेशीयों के तलवे चाटने में मशगूल हो.

अमरीका में मौजूद भारतीय छात्रों से पूछे की वे अमरीका में कितना सुरक्षित महसूस करते हैं , शाम ढालने के बाद जगह जगह रंगे पुते हुए नशेड़ी मवालियों का जमावड़ा लग जाता है और किसी भी एशियाई व्यक्ति को देख कर वे टूट पड़ते हैं. यह नशेड़ी मवाली इतने ख़तरनाक होते हैं की पोलीस की पेट्रोल पार्टी भी इनसे भिड़ना उचित नही समझती.

कॉलेज कॅंपस में भी भारतीय सुरक्षित नही हैं हालिया घटनाओं में भारतीय विद्यार्थियों को जिस तरह निशाना बनाया गया है उसकी वजह से भारतीय विद्यार्थियों की अमरीका में आवक घाटी है. आज भारतीय छात्र अमरीका जाने के बजाय ऑस्ट्रेलिया जाना पसंद करते हैं , हालाँकि वहाँ भी हालात अच्छे नही हैं.

इस सब को देखते हुए क्या कोई भारत सरकार अपनी जाँच टीम इन मुल्कों में भेज कर पता कराएगी की विगत वर्षों में भारतीयों के खिलाफ हमले क्यों बढ़ रहे हैं ? और खुद अमरीकन सरकार इस सब से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है? कम से कम मुझे इस बात की उम्मीद बिल्कुल नही है की ऐसा कुछ होगा, क्यूंकी भारत सरकार का ट्रॅक रेकॉर्ड यही कहता है की वे विदेशो में रहने वाले भारतीयों के हितों के प्रति उदासीन हैं. विदेशों में स्थित भारतीय उच्चायोग में मंत्रियों के रिश्तेदार तैनात हैं या कुछ ऐसे लोग जो फोकट में मज़े कर रहे हैं. अनिवासी भारतीयों चाहे मरे या जिएं इन्हे इस से कुछ फराक नही पड़ता.

2 टिप्‍पणियां:

  1. न फरक पड़ता है
    कोई नहीं समझता

    अच्छा लिखा है आपने , साथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है । यूँ ही लिखते रहे ।

    हमें भी उर्जा मिलेगी ,

    धन्यवाद
    मयूरअपनी अपनी डगर

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