शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

हो रहा भारत निर्माण... !

आजकल हालात कुछ यूँ हो गये हैं कि लगता है जल्द ही मुल्क में दोबारा एमर्जेन्सी लगने वाली है . कांग्रेसी नेताओं के हाव - भाव में एक अलग ही आक्रामकता नज़र आ रही है  . शायद  गुज़रे महीने जो इनकी मैडम ने इनको विपक्ष के हमलों पर आक्रामक रुख़ अख्तियार करने का हुक्म सुनाया था उसे बड़ी वफ़ादारी से निभा रहें हैं

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http://www.jagran.com/news/national-sonia-instruction-for-attacking-attitiude-9592411.html

http://khabar.ndtv.com/news/show/coal-report-bjp-insists-on-pm-s-resignation-sonia-asks-her-mps-to-be-aggressive-25534

कुछ दिनों पहले जो  कांग्रेसी  विपक्ष और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का सामना करने से कतराते थे अब तेवर दिखाने लग गये हैं. यह आक्रामकता संसद में विपक्ष के सामने दिखाते तो फिर भी ठीक था लेकिन यह एग्रेशन आम जनता के खिलाफ खुल्लम खुल्ला दिन दहाड़े  बीच बाजार दिखा रहे हैं 

दो दिन पहले गुजरात के वडोदरा  में टोल प्लाज़ा पर जब पोरबंदर के कांग्रेसी सांसद  की गाड़ी रोकी गयी तो भड़क कर उसने बंदूक टोल कर्मियों पर तान दी और उन्हें जान से मार डालने की धमकी दी मज़े की बात यह है कि उक्त सांसाद का संसदीय क्षेत्र पोरबंदर है जो अहिंसा के  पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जन्मस्थली है , इन्हीं गाँधी के नाम पर  आज़ादी से ले कर अब तक साल दर साल कांग्रेस वोटों की फसल काट रही है



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http://navbharattimes.indiatimes.com/asked-to-pay-toll-cong-mp-pulled-out-gun/articleshow/16782276.cms


उधर , उत्तरप्रदेश में एक विधायक ने महिला आईएएस से बदतमीज़ी की
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http://www.bhaskar.com/article/UP-OTH-mla-upset-a-woman-ias-3915113-NOR.html?seq=3&HT3=

और , पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल के एक नेता ने कालेज छात्रा के साथ दुष्कर्म किया
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http://navbharattimes.indiatimes.com/-bengal-college-girl-drugged-and-gangraped/articleshow/16785941.cms

 इधर सरकारी जाँच एजेंसियाँ भी हरकत में आ गयीं है खबर है की उत्तराखंड सरकार ने योगगुरु  बाबा रामदेव के गुरु की गुमशुदगी की जाँच सीबीआई से कराने  की सिफारिश की है
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http://navbharattimes.indiatimes.com/ramdevs-missing-guru-case-to-cbi/articleshow/16785264.cms

 सनद रहे पिछले साल रामलीला मैदान में हुए हंगामे के बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने रामदेव पर यह आरोप लगाया था कि उन्होने अपने गुरु को गायब करवाया है.

उधर कांग्रेसी नेता आरोपों से इतने विचलित हो गये हैं की उन्होने टीवी चॅनेल्स पर केस कर दिया है
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http://navbharattimes.indiatimes.com/louise-khurshid-files-defamation-case/articleshow/16787242.cms
http://zeenews.india.com/news/nation/%E2%80%A2-unfairly-targeted-for-pursuing-truth-in-coalgate-scam-by-industrialist-turned-politician-naveen-ji_805291.html

उधर हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री को यह साक्षात्कार हुआ है कि सूचना के अधिकार के क़ानून का आम जनता ग़लत इस्तेमाल सरकार के खिलाफ और गोपनीय जानकारियों को जुटाने के इरादे से करती है . मज़े की बात यह है कि पिछले दिनों जब कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी की विदेश यात्रा और स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के बारे केंद्र सरकार से विवरण इस सूचना के अधिकार की बदौलत माँगे जाने का मुद्दा मीडिया में उछला तो साहब झल्ला उठे,


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http://khabar.ndtv.com/news/show/rti-should-be-circumscribed-if-it-encroaches-on-privacy-pm-27465

उनका झल्लाना बेतुका है क्योंकि हालात ऐसे हैं कि सूचना के अधिकार वाले क़ानून को वजूद में आए भले ही सात साल से लंबा वक्त बीत गया हो , आम जनता अभी भी इसके  बारे में अधिक नहीं जानती . जहाँ सरकार अपनी अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों  से संबंधित कथित कल्याणकारी नीतियों का प्रचार मीडिया में जोरों शोरो से करती है , वहीं सूचना के अधिकार के बारे में नही करती , दिलचस्प बात यह है कि यह क़ानून कांग्रेसी शासन के दौरान ही वजूद में आया है. और आरटीआई के द्वारा क्या कार्यकर्ता और क्या विपक्षी दल सभी सरकार के बखिए उधेड़ने पर आमादा हैं.


प्रधानमंत्री भले ही बेतुके तर्क दें कि आरटीआई के इस्तेमाल  से व्यक्तिगत  निजता  का हनन  और गोपनीय बातों  को जानने के लिए  किया जाता हो किंतु वह भी इस बात को मानेंगे कि इसी क़ानून की बदौलत कई भ्रष्टाचार और घोटाले उजागर हुए हैं वैसे भी  सार्वजनिक जीवन जीने वाले नेताओं की कोई निजता नहीं होती , वह हर वक्त जनता के प्रति जवाबदेह होते है , इसलिए प्रधानमंत्री का तर्क वाहियात है.

इन सारी घटनाओं का सिलसिला गत माह से शुरू हुआ है और यह इत्तेफ़ाक नहीं है , बल्कि कांग्रेस की  सोची समझी स्ट्रेटेजी है.   


मीडिया द्वारा आए दिन उजागर  होते भ्रष्टाचार के मामलों से तंग आ कर जनता का ध्यान बंटाने के लिए एकाएक कांग्रेस 'रिटेल में एफडीआई ले आई ,  डीजल महँगा करा दिया और साल में छ: सिलेंडर का कोटा तय किया और फिर एक एक कर अपने विरोधियों को निबटाने लगी.

लेकिन कांग्रेस के नेता अपनी  ही  ग़लत बयानबाज़ी के चलते लानत मलामत का शिकार बन रहे हैं
अभी कल परसों की ही खबर है कांग्रेस के  युवराज एक कार्यक्रम में भाषण देने पंजाब तशरीफ़ लाए , जनाब ने अपने भाषण में यह ज्ञान देश की जाहिल जनता के सामने परोसा कि पंजाब के  हर दस में से सात  नौजवान  नशेड़ी हैं
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121012_rahul_punjab_js.shtml


http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-punjab-congress-rahul-ghandi-drugist-39-39-270805.html


जनाब ने यह बताने की जहमत नहीं उठाई  कि यह बात वे किस हवाले से कह रहे हैं  खास बात यह है कि इनके वालिद साहब के जमाने में उनके चेले चपाटों  ने इन्हीं  नौजवानों के साथ बड़ी ज़्यादती की थी आज साहबज़ादे उनको नशेड़ी बता कर उनकी इज़्ज़त अफज़ाई कर रहे हैं.


पिछले दिनों हरियाणा में एक बलात्कार पीडिता द्वारा की गयी आत्महत्या का मामला उठा , कांग्रेस अध्यक्षा पीड़ित परिवार को हिम्मत बंधाने गयीं  लेकिन वहाँ की क़ानून व्यवस्था का आलम यह है कि उनके वहाँ तशरीफ़ लाने की देर थी और उनका  स्वागत दो अन्य बलात्कारों की खबर  से हुआ .
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http://hindi.in.com/latest-news/news/Haryana-Two-Rapes-Reported-After-Sonia-Visit-1510752.html
हरियाणा में महिलाओं के प्रति अत्याचार में वृद्धि पर एक नेता ने यह कहा कि नब्बे प्रतिशत मामलों में लड़कियों की सहमति होती है. जनाब ने  अपने युवराज की भाँति आंकडें तो दिए लेकिन उसका स्रोत नहीं बताया . जब मामले ने तूल पकड़ा तो साहब हाथ झटकते नज़र आए . बोले कि मैने तो गपशप के बीच बलात्कार की बातें की थी और सच - झूठ का पता वह नहीं जानते
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121012_haryana_rape_leader_sm.shtml
उधर कांग्रेस अध्यक्षा अपने नेता के इस गैर ज़िम्मेदाराना बयान की निंदा करने की बजाए यह कहती हुई पाईं गयीं कि बलात्कार की घटनाएँ तो पूरे देश में होतीं हैं  
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http://navbharattimes.indiatimes.com/sonia-gandhi-meet-the-rape-victims-in-haryana/articleshow/16735279.cms

वाकई , अपनी सरकार का इस बेशर्मी की हद तक बचाव करने का रिकार्ड शायद कांग्रेस से बेहतर अन्य किसी पार्टी का न होगा.इसी कांग्रेस की विरोधी पार्टी बीजेपी के नेता वाजपेयी जी ने गुजरात हिंसा के चलते मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'राजधर्म' निभाने की नसीहत दी थी उधर कांग्रेस का आलाकमान हरियाणा सरकार का बचाव कर रहा है.

हालत इस हद तक बिगड़ चुके हैं और जनता प्रशासन और सत्ताधारी नेताओं से इस कदर मायूस हो गयी है क़ि कांग्रेस शासित प्रदेशों में बिगड़ती क़ानून व्यवस्था से त्रस्त आम जनता अब खुद क़ानून हाथ में ले रही है. दो दिन पहले  नागपुर में हज़ारों की उग्र भीड़ ने एक अपराधी शख्स को दौड़ा - दौड़ा कर मार डाला और पुलिस प्रशासन भीड़ का मुँह ताकता रह गया

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http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=121010-155720-100000

सोचने वाली बात है कि जो हश्र नागपुर के गुण्डों का हुआ क्या हमारे देश के नेता इससे कोई सबक लेंगे ? या फिर अपनी ही मनमानी करते रहेंगे . डर इस बात का है यदि जल्द ही प्रशासनिक दमन और बढ़ती महँगाई , जनविरोधी नीतियों के बारे में कुछ न किया गया तो अराजकता का माहौल फैल सकता है क्योंकि जनता का सरकार पर से भरोसा कभी का  उठ चुका है.

रविवार, 11 मार्च 2012

उत्तर प्रदेश के नतीजे :पार्टियाँ अर्श से फर्श पर

दोस्तों अब क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम आ चुके हैं कई पार्टियों का भ्रम टूट गया है. अर्श से फर्श तक आने की कहानी तमाम पार्टियों में लगभग एक सी है.

एक तरफ तो कांग्रेस पार्टी की रही सही इज़्ज़त इन चुनावों में नीलम हो गयी वहीं दूसरी ओर भाजपा भी अयोध्या में औंधे मुँह ऐसे गिर पड़ी कि यह मुश्किल लगता है आगामी लोकसभा चुनावों में यह पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर २ अंकों में सीटें हासिल कर पाएगी अथवा नहीं .

हालाँकि मुल्लायम राज के वापस लौटने का मुझे इतना दुख नहीं जितना कि कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश में फ़ज़ीहत होने पर. खबर है की सोनिया जी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की सभी सीटों पर कांग्रेस को पराजय झेलनी पड़ी है. कांग्रेस का इतना बुरा हाल शायद ही पहले कभी हुआ होगा.

इन चुनावों से यह स्पष्ट है कि आने वाले १० सालों में उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कोई संभावना मौजूद नही है.

शुरुआती विश्लेषण से ऐसा मालूम पड़ता है कि मुसलमानों का एक तरफ़ा वोट सपा के खाते में गया है जबकि शहरी भागों में शिक्षित , मध्य वर्ग के वोटर जिन्होने पिछली बार बसपा का समर्थन किया वे कांग्रेस , भाजपा
और सपा में बँट गये .

आइए हम उन कारणों पर नज़र डालते हैं कि ऐसा क्यों हुआ :-

१). मायाजाल का टूटना :- बीते पाँच सालों में मायावती सरकार द्वारा ऐसा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया गया जिसके चलते मतदाता उन्हें दोबारा मौका देते .यूँ भी कोई लोकहित में काम करने के बजाए वह अपने और हाथियों के बुत लगाती रहीं और अपने विरोधियों को चुन चुन कर परेशान किया .

२). कांग्रेस का सिरदर्द :- पिछले चुनावों में कांग्रेस के बमुश्किल २२ सीटें थी जो इन चुनावों में बढ़ कर तकरीबन २८ हैं . मीडिया भले ही इस प्रदर्शन को कम आँकें लेकिन सच्चाई तो यह है की इन छ: सीटों का इन प्रतिकूल हालात में बढ़ना निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी है. भले ही राहुल फॅक्टर फुस्स हो गया लेकिन कुछ सीटें तो कांग्रेसी उम्मीदवार महज कुछ हज़ार वोटों से हारें है.

हालाँकि कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बसपा को अधिक नुकसान पंहुचाया इसमें कोई दो राय नहीं. खुद मायावती ने भी इस बात को कबूला है. कांग्रेस ने मुसलमानों को अपनी तरफ खींचने के लिए आरक्षण के सब्ज़ बाग दिखाए जिसको ले कर भाजपा ने कड़ा विरोध किया . यक़ीनन चुनावों से पहले कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियाँ मजबूत होती दिखाई दी . इसलिए बसपा के डूबते जहाज़ से चूहे भाग कर इन पार्टियों मिलने की सोचने लगे. उधर जब बाबू सिंह कुशवाह भाजपा में शामिल हुए तो मुसलमानों को यकीन हो गया कि भाजपा की स्थिति मजबूत है इसलिए वह बस-ट्रक भर भर कर मतदान केंद्र पंहुचे और साइकल के आगे बटन दबाया.

३). हिंदू मध्यम वर्ग का बसपा से मोहभंग :- बीते चुनावों में मायावती की सोशल इंजिनियरिंग भले ही कामयाब रही इन चुनावों में हिंदू मध्य वर्ग और उँची जाति के लोग बसपा से छिटक गये . चुनावों से पहले भाजपा -कांग्रेस की मजबूत होती स्थिति को देख उन्होने इन पार्टियों को चुना . यूँ भी बसपा इनकी पहली पसंद न थी.

४). पिछड़ी जाति का वोट बटना :- इन चुनावों में मध्य प्रदेश से 'आयातित' और स्टार- कॅंपेनर साध्वी उमा भारती को भाजपा के टिकट पर चरखारी में उतार कर नितिन गडकरी ने एक तीर से कई निशाने किए , पहला तो उमाजी के पुराने प्रतिद्वंदी 'श्रीमान बंटाधार' दिग्विजय सिंह को परेशान कर दिया , दूसरा राहुल गाँधी की बुंदेलखंडी नौटंकी का प्रभाव ज़ीरों किया और बसपा के ट्रेडिशनल वोटर्स को खींचना.

सपा की जीत पर पूरा मीडिया पगलाया हुआ सा है . कुछ समय पहले तक राहुल गाँधी की तारीफों में क़सीदे पढ़ने वाले लिक्खाड़ और पत्रकार अब अखिलेश की जय - जयकार कर रहे हैं. अख़बारों के संपादकीय और आर्टिकल्स में अखिलेश की तारीफों के पुल बाँधे जा रहे हैं. मानों उत्तर प्रदेश में इससे अभूतपूर्व कभी कोई घटना हुई ही नही.

पाँच साल पहले यही मीडियावाले मायावती की जीत को लेकर बड़े खुश थे लेकिन जल्दी ही पूरा मीडिया उनके पीछे पड़ गया . यही हाल अखिलेश और उनकी पार्टी वालों का होगा. अखिलेश को मुख्यमंत्री बनवा कर मुल्लायम इस भ्रम में हैं कि वह तीसरा मोर्चा बना कर प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन जनाब , इस बात के लिए अभी अभी दिल्ली बहुत दूर अस्त !!!
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