दोस्तों मैने अपने पिछले लेख में स्टॅटिस्टिक्स के साथ यह साबित किया था की कैसे भारतीय मीडीया एक पार्टी और एक विचारधारा को एंडॉर्स करता है , इसी बीच पेड़ न्यूज़ की खबरों , मीडिया संस्थानों में व्याप्त अंधेर से पूरी दुनिया वाकिफ़ हो गयी कि 'प्रतिष्ठित' मीडिया कर्मियों का चरित्र 'भ्रष्ट' नेताओं , दुर्दांत आतंकवादियों झोला छाप ठगों और फ़र्ज़ी लोगों से ज़रा भी अलग नही है मगर फिर भी यह मक्कार मीडिया कर्मी अपने अपने टीवी चॅनेल्स और कॉलम में अपने वाहियात विचार रखते हुए इस बात का मुग़ालता पाले हुए हैं कि इनसे पाक ओ साफ कोई लोग नही इनके पेशे से अच्छा कुछ नहीं.
यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की मीडिया को जहाँ सरकार के बखिए उधेड़ने चाहिए वहीं वह अपना कम छोड़ कर उल्टे विपक्ष के पीछे हाथ पाँव मुँह धो कर पीछे पद गये हैं ताकि सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से उन्हें नयी सेवाएँ लॉंच करने की आज्ञा मिले और सीकूलर [जी हाँ सीकूलर क्योंकि यह 'सिक' [बीमार] विचार के हैं] सरकार से इन्हें
सहयता मिलती रहे.
इसी का नतीजा है जब बढ़ती महँगाई , किसानों की आत्महत्या और सरकार द्वारा प्राइवेट तेल कंपनियों के 'मुनाफ़े' हेतु जब तेल के दाम बढ़ाए गये तो एक भी मीडीयाई कौवे की हिम्मत नही हुई की इस जनविरोधी फ़ैसले के खिलाफ मुँह खोले और ज़बान को थोड़ा कष्ट दे , सरकार की तारीफ में लिक्खाड़ों और क़लम घिसने वालों के पेन की इंक सूख गयी , वेब न्यूज़ पोर्टल वालों की उंगलियाँ ऐसी खबर लिख पाते इससे पहले ही लकवे की शिकार हो गयीं
मगर जैसे ही एक झोला छाप इंग्लीश न्यूज़ चॅनेल ने एक 'कथित' स्टिंग ऑपरेशन 'भगवा आतंकवाद' के खिलाफ किया , धर्म निरपेक्ष और सांप्रदायिक सदभाव के ठेकेदारों की बाँछे खिल गयीं , कूद कूद कर इनके नुमाईंदे अपनी फूली हुई तोंद और पान की पीक से लबालब भरे मुस्मुसाए हुए अपने मुँह ले कर मीडीयाई कौओं को अपनी बाइट देने पंहुच गए और उँचे स्वर में चीख चीख कर संघ को कोसने लगे , किसी ने यह जाने की कोशिश नही की इस स्टिंग ऑपरेशन की असलियत क्या है? स्टिंग ऑपरेशन के कोवोर्डिनेटर तक का नाम किसी ने पूछने की जहमत नही उठाई जिस फोरेन्सिक लेबोरेटरी में इस टेप की जाँच की गयी किसी ने यह नही सोचा की उसको मॅनेज किया गया है या नहीं , गोया फोरेन्सिक लेबोरेटॉरी 'सरकारी लेवोट्री' [ पैखाना ] बन गयी जहाँ सरकार द्वारा प्रायोजित मीडिया चॅनेल्स अपनी गंदगी डंप करते हैं .
इन छिद्रान्वेशियों को यह तो नज़र आया कि वीडियोकॉन टॉअवर में प्रदर्शन कर्मियों ने गमले फोड़े , लेकिन यह नज़र नही आया की किस प्रकार बिहार विधानसभा में राजद , कांग्रेस और पासवान जी की पार्टी के सम्मानीय विधायकों ने गदर मचाया , कुर्सियाँ तोड़ीं गयीं और बिला वजह बवाल मचाया. संघ के 'चड्डीधारी' कार्यकर्ताओं को तो फिर भी मीडीयाई कौवे और धर्म निरपेक्षता के ठेकेदार फासीवादी कहते हैं लेकिन इन सम्मानीय विधायकों , धर्म निरपेक्षता के पुरोधाओं के काम फासीवादियों से किन मायनों में अलग हैं?
हाल ही में कांग्रेस के भूतपूर्व विधायक श्री संभाजी राव कुंजीर को पुणे में उन्हीं की पार्टी वर्कर्स ने बुरी तरह लात घूसों से मारा और यह घटना कांग्रेस भवन में हुई , अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए प्रदेश की कांग्रेस समिति के अध्यक्ष ने "दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही किए जाने" की बात कही लेकिन इस घटना को चार दिन हो गये कुछ नही हुआ और बात आई गयी हो गयी...
http://www.indianexpress.com/news/congmen-beat-up-their-exmla-in-pune/652451/
ज़रा याद करिए इन्हीं मीडीयाई कौओं ने करीब ६ साल पहले दीवाली के दिन भाजपा की प्रेस कोनफेरेंस में हुए उमा भारती प्रकरण को बार बार लगातार हज़ार बार दिखाया था , नौसिखिए पत्रकारों और कुकुरमुत्ता छाप मीडिया चॅनेल्स ने इस घटना पर अपने 'व्यूस' देश की जनता के सामने रखे और भाजपा में व्याप्त अनुशासन हीनता को लोगों को दिखाया उस दिन उमा जी ने आडवाणी जी की बात पर अपने कन्सर्न्स रेज़ किए और विरोध में वॉक आउट कर गयीं लेकिन मीडिया ने इसे अनुशासन हीनता करार देते हुए भाजपा को मृत प्राय: बता दिया , हैरत इस बात पर होती है की लात घूसे चलने पर कुछ अख़बारों को छोड़ इस खबर को मेजोरिटी मीडिया ने ब्लॅक आउट किया , क्यों किसके कहने पर???????
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शब्द ऐसे जिनसे लोगों की आँखे खुल जाये, लिखो अब क्यों नहीं लिख रहे हो।
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