शुक्रवार, 3 जुलाई 2009
कांग्रेस आई !! समलैंगिकता लाई !!!!
हैरान हो गये न शीर्षक पढ़ कर? यह तो होना ही था , किसी को विश्वास हो न हो मुझे पक्का यकीन था की कांग्रेस के सत्ता संभालते ही 150 साल पुराने "अँग्रेज़ी" क़ानून की धज्जियाँ उड़नी ही उड़नी हैं. जैसा मैने सोचा था वही हुआ भारत में समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता मिल गयी ! और जैसा अपेक्षित था सभी धर्मगुरुओं , मौलवियों , बिशपों ने एक स्वर में इस क़ानून का कड़ा विरोध जताया!
जैसा की मैने कहा कांग्रेस ने हाइ कोर्ट के मुँह से फ़ैसला बुलवा कर कर एक तीर से कईं निशाने मारे हैं पहला तो यह की तथाकथित रूढ़िवादी और पुराने विचार के लोगों के गुस्से से न्यायालय के निर्णय को ढाल बना कर खुद को बचा लिया और लगे हाथ समलिंगियों का समर्थन भी हासिल कर लिया , एक ही झटके में पूरा विपक्ष कांग्रेस की काइयां और घाग चालबाज़ी के आगे बहुत बौना हो गया.
एक अँग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया समूह जिसने समलैंगिकता के समर्थन में मुहिम छेड़ रखी थी उसके तमाम पन्ने न्यायालय के ऐतिहासिक "निर्णय" से भरे पड़े थे कई समिलिंगी समर्थक फिल्म जगत की हस्तियों और बुद्धिजीवियों ने इसे अभूतपूर्व बताया और कहा की अँग्रेज़ों के जाने के साथ ही यह "समलिंगी" विरोधी क़ानून भी जाना चाहिए था.
मज़े की बात यह है की आम तौर पर अँग्रेजिदा तौर तरीकों की प्रशंसा में पन्ने काले करने वाले टाइम्स समूह के पत्रकार आज समलिंगी हितों के लिए अपनी विदेशियों का गुणगान करने की नीति को दिखाने के लिए ही सही तिलांजलि दे रहे हैं. और उपर से समलैंगिकता को जायज़ ठहराते हुए इसे प्राचीन भारत में प्रचलित बताते हैं. कांग्रेस सरकार में मंत्री वीरप्पा मोइली की राय भी इससे बहुत अलग नही है कुछ दिन पहले ही उन्होने यह इशारा किया था की सरकार समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता देगी और देखिए मोइली की मुँह की थूक अभी सूखी भी नही थी की फ़ैसला आ गया ! भाई वाह! मान गये कांग्रेस को जो कहा सो कर दिखाया यूँ भी देश के संसाधानो पर गैर हिंदुओं का हक पहले बता कर कांग्रेस ने अपनी मंशा जाहिर की थी अब तो पूरी ताक़त के साथ हिंदू धर्म की नींव पर इन्होने चोट की है समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता दिला कर. वैसे कहने वाले तो यह भी कहते हैं की कांग्रेस ने जान बुझ कर अदालत में केस कमजोर रखा जिससे की एक तीर से कई पंछी मार सकें . अब शायद ही कांग्रेस सरकार इसको उपरी अदालत में चुनौती दे.
कांग्रेस की चालबाज़ी देखिए :-
१) .एक तरफ यह लफंगे नेता समलैंगिकता को मान्यता दिला कर बढ़ावा दे रहे हैं वहीं एक व्यस्कों की कॉमिक्स 'सविता भाभी' को बॅन किया है।
२).यह खुद पुलों , यूनिवर्सिटीस , स्कूल कॉलेज विभिन्न परियोजनाओं पर अपने गाँधी नेहरू का नाम चस्पा करते हैं वहीं मायावती के मूर्तियाँ बनवाने पर इनको दस्त लगते हैं.
३). अपने आप को कांग्रेसी बड़ा देशभक्त बताते हैं और इन्ही का प्रधानमंत्री बेशर्मी से ऑक्स्फर्ड जा कर ब्रिटिश हुकूमत की तारीफ में कसीदे पढ़ता है.
४). एक आतंकवादी पकड़े जाने पर मंत्री जी पूरी रात सो नही पाते , वहीं मुंबई में आतंकवादी दहशत का खूनी खेल खेलते हैं लोगों को मारते हैं , बम फोड़ते हैं होटल जलाते हैं और प्रधानमंत्री चैन की नींद लेते हैं
५)।हिंदू छात्र छात्राओं को जब विदेशो में प्रताड़ित किया जाता है तो उन्हे अनसुना कर सो जाते हैं.
६).अभी तो बस शुरुआत है , यह लोग आम आदमी की गर्दन मरोड़ के उसका पूरा खून निचोड़ लेंगे पेट्रोल 4 रुपये से बढ़ाया हैं , डाले 80 रुपये किलो हो गयी हैं , हरी सब्जियाँ बाजार में मिलना दुश्वार हुआ है और तमाम जनविरोधी नीतियाँ पूरे जोरों के साथ लागू हो रही हैं ।
७). चुनाव के पहले चिदंबरम हंसते हुए जूता झेल गये और जरनैल सिंह को माफी दे दी , अब खबर आई है की उनकी भी छुट्टी कर दी गयी है। 17 साल से सोए लिब्रेहन आयोग को अभी अभी इन्होने जगाया है .और अपने सभी विरोधियों को फाँसने की इनकी पूरी तय्यारी है।
अब यदि कल को आपका दोस्त या भाई अपनी 'आज़ादी' का कुछ 'हट के' इज़हार करे तो खुशी मनाईए की 'बापू के सपनो का भारत' कितनी तरक्की कर गया और सोनिया जी की जय हो कह कर आप भी 'खुश' हो जाइए!!!
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कहीं कांग्रेस द्वारा समलैंगिकता का समर्थन, किसी "विदेशी राजकुमार" के लिये तो नहीं है? :)
जवाब देंहटाएंis vishay par to main itna hi kahunga "Homosexuality is not acceptable but homosexuals are traetable"
जवाब देंहटाएंVisit my blog for the same issue.
http://kucchbaat.blogspot.com/
कांग्रेस ने हाइ कोर्ट के मुँह से फ़ैसला बुलवा कर ..???
जवाब देंहटाएंहाइकोर्ट अगर किसी के कहने पर फैसला सुनाते तो फिर वो केवल काग्रेंस की ही नहीं सुनते होगें..
हिंदू छात्र छात्राओं को जब विदेशो में प्रताड़ित किया जाता है तो उन्हे अनसुना कर सो जाते हैं....???
छात्रों को भी बांट दिया.. कम से कम देश से बाहर तो उन्हे एक समझें..
कुछ ज्यादा हो गया..
कांग्रेस की फांस कुछ गहरे में फंसी है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
लगता है काग्रेंस ने काफ़ी गहरी चोट दी है
जवाब देंहटाएंरंजन साहब हाइ कोर्ट्स या बाकी अदालतें सुनवाई के बाद ही अपना फ़ैसला सुनाते हैं वैसे भी इस मामले में कोर्ट ने नाज़ फाउंडेशन और कांग्रेस सरकार की ही सुनी है 'आम आदमी' इसमे कोई पार्टी नही था! और यह बात समझ लीजिए अमेरिका में भारतीय छात्र और प्रफेसर्स को यूनिवर्सिटीस में असामाजिक तत्व बेहद परेशन करते हैं , यह मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ. पिछले पाँच सालों में कई निर्दोष जाने अन्धाधुन्द गोलीबारी लूट खसोट में गयी हैं . भारतीय उच्चायोग में बार बार मदद की गुहार लगाने के बाजूद वे कोई कड़ा कदम नही उठाते . उल्टे हमारे यहाँ कही विदेशी से ज़्यादती हो गयी तो विदेशी भारतीय उच्चायोग को असमय बुला कर खूब खरी खोटी सुनाते हैं.
जवाब देंहटाएंवहीं दूसरी तरफ कुछ मुसलमान छात्र जब ऑस्ट्रेलिया और यू के में पकड़े जाते हैं तो प्रधानमंत्री की नींद हराम हो जाती है, यह दोगलापन नही तो फिर क्या है? और एक बात यदि आप मुसलमान हैं और पढ़ने विदेश जा रहे हैं तो यह मान के चलिए की किसी स्थानीय मस्जिद में या मुस्लिम मोहल्ले में आपके रहने खाने पीने और ठहरने की पूरी व्यवस्था हो जाएगी ! [ हमे रहने खाने से ले कर हर चीज़ के लिए एडीया घिसनी पड़ती हैं ] उस वक्त यह किसी संदिग्ध के साथ रह लेंगे तब इनको अपना मज़हब याद आएगा मुल्क नही , हालाँकि हम मज़हाबियों के द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर इनकी आँखें खुलेंगी , लेकिन हर मुस्लिम छात्र अपने आप को आम भारतीय छात्रों से अलग ही समझता है और इसके पीछे मज़हबी सोच है , जिसका कोई इलाज नही.
काशिफ भाई अपने कॉमेंट्स देने के लिए शुक्रिया , यह भी बताते जाएँ की आख़िर मुस्लिम दुनिया में अदालत के फ़ैसले पर क्या प्रतिक्रिया हुई है , जहाँ तक मैं समझता हूँ तमाम मज़हबी नुमाएंदों ने इस फ़ैसले का विरोध किया है.
जवाब देंहटाएंकाग्रेस राज है सब कुछ सम्भव है,
जवाब देंहटाएंमेरे भाईयों पहले तो धारा-377 को जानें आपको अपनें ब्लॉग पर आनें का न्यौता देता हूं। धारा-377...ऐसा देस है मेरा! जरूर पढ़ें।
जवाब देंहटाएंआपनें कहा कि कोर्ट लोगों की आस्था के बारे में सोचे? पर कोर्ट ने किसी को आस्था को ठेस पहुंचानें वाला तो कोई काम नहीं किया। किन धर्म शास्त्र में किन्नरों की गिनती इस लोक के जीवों में नहीं होती? समलैंगिक भी तो इंसान ही है। आप ये भी भली-भांति जानतें होंगें की हमारें देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में जानवरों तक को संरक्षण देनें के लिए नियम बनाएं जाते हैं उनको जीनें के अधिकार से वंचित करनें के लिए भी सज़ा का प्रावधान है, इंसान अपनी शक्तिय़ों और क्षमताओं को जानता था इसीलिए उसनें अपनें और प्रकृति के बीच सृष्टि के द्वारा बनाई गई हर चीज़ को सम्मान करनें के लिए अलग स्थान दिया। कुछ नियम कायदें बनाए, इंसान से बड़ा खतरनाक पशु इस सृष्टि में कोई नहीं है और उससे बड़ा सहिष्णु भी कोई नहीं। इसी देश में नारी को आज भी तिरस्कृत किया जाता है वो भी आपकी संस्कृति में ही है शायद! आप ही के किसी वेद ग्रंथ के बोल हैं कि "ढोल,गावंर,शूद्र,पशु,नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ।।"
सदियों तक इसे ही संस्कृति माना, और इसे आज भी लोग मानतें है, और ऐसे बहुतेरे उदारहरण है, जहां आपकी तथाकथिक संस्कृति को चुनौती दी जा सकती है और दी भी है कई समाज सुधारकों नें आपको पता भी होगा। यही देश था जिसनें की सती-प्रथा के वरुद्ध हुए आंदोलनों,स्त्री शिक्षा,दलितों के मंदिर में प्रवेश, विरोध किया था औऱ यही देश है जहां आज भी दहेज के लिए स्त्री को मार दिया जाता है, शायद यही संस्कृति इज़ाज़त देती होगी...बातें बहुत हैं दोस्त।
मेरे भाई संस्कृति नदी की धारा की तरह सतत् प्रवाहित रहती है, स्थान-स्थान पर रंग बदलती है, सबको देनें का नाम संस्कृति है...नदी की भांति । थौंपनें का नाम संस्कृति नहीं...स्वार्थ कहलाता हैं।
अरे भाई इस बहाने कोंग्रेस ने एक और वोट बैंक का जुगाड़ कर लिया है. वैसे कोंग्रेस में भी समलैंगिकों, हिजड़ों की कहाँ कमी है??
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