बुधवार, 6 मई 2009

अलाउद्दिन खिलजी और मलिक काफूर का "दोस्ताना"

मित्रों आपने इतिहास में दिल्ली सलतनत के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी के बारे में पढ़ा होगा ही , यह पहला विदेशी सल्तनत का नुमाइंदा था जिसने दक्षिण भारत पर अपनी पकड़ अपने सेना नायक मलिक काफूर के द्वारा जमाई .



मलिक काफूर सुल्तान अलौद्दिन खिलजी का विश्वासपात्र सेनापति था जिसे खिलजी ने खंबात की लड़ाई के बाद 1000 दिनार में खरीदा था . मलिक काफूर मूल रूप से हिंदू परिवार में पैदा हुआ एक किन्नर था , जिसको लोक लाज के डर से उसके परिवार वालों ने उसे बेसहारा छोड़ दिया . यही उनकी सबसे बड़ी ग़लती साबित हुई क्योकि आगे जा कर यही मलिक काफूर खिलजी की पाक फौज में शामिल हुआ और हिंदुओं पर तमाम ज़्यादतियाँ कीं .

अलाउद्दिन खिलजी बेशक एक महान योद्धा था लेकिन वह व्यभिचारी था , यह कहना उचित होगा की वह भारतीय इतिहास का पहला समलिंगी था . जी हाँ यदि यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटनना की प्रोफेसर वनिता रुथ की माने तो यह बात शत

प्रतिशत सही है , जिसका उल्लेख उन्होने अपनी पुस्तक सेम सेक्स लव इन इंडिया : आ लिटररी हिस्टरी में किया है . किताब में यह भी लिखा है की सुल्तान खिलजी मलिक काफूर के सौंदर्य पर फिदा हो गया था और उसे खंबात की लड़ाई के पश्चात बतौर गुलाम खरीदा था . यह पता चलता है की अलाउद्दिन खिलजी के मलिक काफूर के साथ समलिंगी रिश्ते थे.

अलाउद्दिन खिलजी , मलिक काफूर पर इतना भरोसा करता था की उसने उसे अपनी सेना का प्रधान सेनानायक बना दिया था . कालांतर में मलिक काफूर ने इस्लाम क़ुबूल किया और दिल्ली सल्तनत के प्रति वफ़ादारी की कसमें खाईं .

इसी मलिक काफूर ने बाद में दक्षिण भारत के हिंदू राज्यों पर चढ़ाई करी और हज़ारों लाखों गैर मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा . वारंगल , देवगिरी और पांड्या राज्यों को देखते ही देखते मलिक काफूर और उसकी मज़हबी सेना ने धूल चटा दी ,

मलिक काफूर ने बाद में रामेश्वरम में मस्जिद बनवाई . वारंगल के काकतिया राजा को काफूर के साथ संधि करनी पड़ी और इसी के तहत अकूत धन संपदा से अलग मलिक काफूर को कोहिनूर हीरा बतौर उपहार प्राप्त हुआ जिसे उसने अपने मलिक और समलिंगी साथी सुल्तान अलाउद्दिन खिलजी को भिजवाया . खिलजी उसकी कामयाबी पर फूला न समाया और उसको सेना में और अधिक अधिकार बहाल किए.

मलिक कॉयार के कामयाबी का राज़ यही था की जो भी अमूल्य वास्तु उसे युद्धों , चढ़ाई और संधियों में प्राप्त होतीं वह तुरंत अपने सुल्तान के कदमों में उसे पेश करता , इसलिए वह खिलजी का विश्वासपात्र था. लेकिन इसी खिलजी का जब मलिक काफूर से मोह भंग हुआ तो उसने उसे जान से मरवा दिया , यह कहानी भी बड़ी रोचक है आइए देखें.

सन 1294 के करीब देवगीरि राज्य अलाउद्दिन खिलजी के सीधे नियंत्रण में आ गया संधि के तहत देवगीरि के यादव शासक हर साल दिल्ली सल्तनत को एक तयशुदा रकम भिजवाते थे , किन्ही कारणों से यह रकम बकाया होती रही , और 1307 में अलाउद्दिन खिलजी ने अपने विश्वास पात्र मलिक काफूर को इसे वसूलने देवगिरी भेजा , मलिक काफूर ने देवगीरि पर चढ़ाई की और धन दौलत लूट कर दिल्ली भिजवाई साथ ही साथ , देवगीरि के शासक रामदेव की दो सुंदर बेटियों को

उठवा कर दिल्ली में अलाउद्दिन खिलजी के हरम में भिजवा दिया. जब खिलजी ने इन राजकुमारियों के साथ सोने की इच्छा जताई , तो बड़ी राजकुमारी ने युक्ति लड़ते हुए मलिक काफूर का नाम यह कहते हुए फँसा दिया की हमे बादशाह की खिदमत में पेश करने से पहले ही मलिक काफूर हमारे साथ सब कुछ कर चुका है. अलाउद्दिन खिलजी एक वासनायुक्त भेड़िया था जिसने अपनी गंदी नज़र चित्तोड़ की रानी पद्‍मिनी पर भी डाली थी. राजकुमारियों की बात सुनकर अलाउद्दिन खिलजी गुस्से से पागल हो गया , उसने उसी वक्त मलिक काफूर की गिरफ्तारी का हुक्म जारी कराया . मान्यता है की उसने काफूर को गाय की चमड़ी में बाँध कर दिल्ली लाने का आदेश दिया , जब मलिक काफूर को दिल्ली लाया गया उसकी घुटन से मौत हो चुकी थी. यह देख कर राजकुमारी खिलजी से बोली की ऐसा आदेश देने के पहले उसे पूरी जाँचपड़ताल करनी चाहिए थी. गुस्से में मूर्ख खिलजी यह भी भूल गया की मलिक काफूर एक किन्नर है . अपनी बेवकूफी से आगबबूला खिलजी ने दोनो राजकुमारियों के हाथ पैर बाँध कर उन्हे ऊँची पहाड़ी से फिंकवा दिया.
सन 1316 में मलिक काफूर की मौत से दुखी और निराश अलाउद्दिन खिलजी ड्रोपसी [एडीमा] से चल बसा , हालाँकि यह माना जाता है की उसकी हत्या उसके एक सेनापति मलिक नायाब ने करवाई

5 टिप्‍पणियां:

  1. Thanks for the info.

    Keep up the good work of letting all know about real History.

    Jayant

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  2. Thanks for the info.

    Keep up the good work of letting all know about real History.

    Jayant

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  3. आपने मलिक काफ़ूर की कहानी को मुहम्मद-बिन-कासिम की कहानी से जोड़ दिया है जनाब। हकीकत ये है कि मलिक काफ़ूर कि हत्या सुल्तान अलाऊदीन की हत्या के छत्तीस दिन बाद हुई थी। अपनी कहानी को थोड़ा संसोधित करें जनाब।

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  4. कृप्या लोगो को गलत इतिहास ना पढ़ाये।

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  5. Pehle History ko thik se study kar lijiye uske baad blog likha kijiye.

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www.hamarivani.com