मित्रों आपने इतिहास में दिल्ली सलतनत के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी के बारे में पढ़ा होगा ही , यह पहला विदेशी सल्तनत का नुमाइंदा था जिसने दक्षिण भारत पर अपनी पकड़ अपने सेना नायक मलिक काफूर के द्वारा जमाई .
मलिक काफूर सुल्तान अलौद्दिन खिलजी का विश्वासपात्र सेनापति था जिसे खिलजी ने खंबात की लड़ाई के बाद 1000 दिनार में खरीदा था . मलिक काफूर मूल रूप से हिंदू परिवार में पैदा हुआ एक किन्नर था , जिसको लोक लाज के डर से उसके परिवार वालों ने उसे बेसहारा छोड़ दिया . यही उनकी सबसे बड़ी ग़लती साबित हुई क्योकि आगे जा कर यही मलिक काफूर खिलजी की पाक फौज में शामिल हुआ और हिंदुओं पर तमाम ज़्यादतियाँ कीं .
अलाउद्दिन खिलजी बेशक एक महान योद्धा था लेकिन वह व्यभिचारी था , यह कहना उचित होगा की वह भारतीय इतिहास का पहला समलिंगी था . जी हाँ यदि यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटनना की प्रोफेसर वनिता रुथ की माने तो यह बात शत
प्रतिशत सही है , जिसका उल्लेख उन्होने अपनी पुस्तक सेम सेक्स लव इन इंडिया : आ लिटररी हिस्टरी में किया है . किताब में यह भी लिखा है की सुल्तान खिलजी मलिक काफूर के सौंदर्य पर फिदा हो गया था और उसे खंबात की लड़ाई के पश्चात बतौर गुलाम खरीदा था . यह पता चलता है की अलाउद्दिन खिलजी के मलिक काफूर के साथ समलिंगी रिश्ते थे.
अलाउद्दिन खिलजी , मलिक काफूर पर इतना भरोसा करता था की उसने उसे अपनी सेना का प्रधान सेनानायक बना दिया था . कालांतर में मलिक काफूर ने इस्लाम क़ुबूल किया और दिल्ली सल्तनत के प्रति वफ़ादारी की कसमें खाईं .
इसी मलिक काफूर ने बाद में दक्षिण भारत के हिंदू राज्यों पर चढ़ाई करी और हज़ारों लाखों गैर मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा . वारंगल , देवगिरी और पांड्या राज्यों को देखते ही देखते मलिक काफूर और उसकी मज़हबी सेना ने धूल चटा दी ,
मलिक काफूर ने बाद में रामेश्वरम में मस्जिद बनवाई . वारंगल के काकतिया राजा को काफूर के साथ संधि करनी पड़ी और इसी के तहत अकूत धन संपदा से अलग मलिक काफूर को कोहिनूर हीरा बतौर उपहार प्राप्त हुआ जिसे उसने अपने मलिक और समलिंगी साथी सुल्तान अलाउद्दिन खिलजी को भिजवाया . खिलजी उसकी कामयाबी पर फूला न समाया और उसको सेना में और अधिक अधिकार बहाल किए.
मलिक कॉयार के कामयाबी का राज़ यही था की जो भी अमूल्य वास्तु उसे युद्धों , चढ़ाई और संधियों में प्राप्त होतीं वह तुरंत अपने सुल्तान के कदमों में उसे पेश करता , इसलिए वह खिलजी का विश्वासपात्र था. लेकिन इसी खिलजी का जब मलिक काफूर से मोह भंग हुआ तो उसने उसे जान से मरवा दिया , यह कहानी भी बड़ी रोचक है आइए देखें.
सन 1294 के करीब देवगीरि राज्य अलाउद्दिन खिलजी के सीधे नियंत्रण में आ गया संधि के तहत देवगीरि के यादव शासक हर साल दिल्ली सल्तनत को एक तयशुदा रकम भिजवाते थे , किन्ही कारणों से यह रकम बकाया होती रही , और 1307 में अलाउद्दिन खिलजी ने अपने विश्वास पात्र मलिक काफूर को इसे वसूलने देवगिरी भेजा , मलिक काफूर ने देवगीरि पर चढ़ाई की और धन दौलत लूट कर दिल्ली भिजवाई साथ ही साथ , देवगीरि के शासक रामदेव की दो सुंदर बेटियों को
उठवा कर दिल्ली में अलाउद्दिन खिलजी के हरम में भिजवा दिया. जब खिलजी ने इन राजकुमारियों के साथ सोने की इच्छा जताई , तो बड़ी राजकुमारी ने युक्ति लड़ते हुए मलिक काफूर का नाम यह कहते हुए फँसा दिया की हमे बादशाह की खिदमत में पेश करने से पहले ही मलिक काफूर हमारे साथ सब कुछ कर चुका है. अलाउद्दिन खिलजी एक वासनायुक्त भेड़िया था जिसने अपनी गंदी नज़र चित्तोड़ की रानी पद्मिनी पर भी डाली थी. राजकुमारियों की बात सुनकर अलाउद्दिन खिलजी गुस्से से पागल हो गया , उसने उसी वक्त मलिक काफूर की गिरफ्तारी का हुक्म जारी कराया . मान्यता है की उसने काफूर को गाय की चमड़ी में बाँध कर दिल्ली लाने का आदेश दिया , जब मलिक काफूर को दिल्ली लाया गया उसकी घुटन से मौत हो चुकी थी. यह देख कर राजकुमारी खिलजी से बोली की ऐसा आदेश देने के पहले उसे पूरी जाँचपड़ताल करनी चाहिए थी. गुस्से में मूर्ख खिलजी यह भी भूल गया की मलिक काफूर एक किन्नर है . अपनी बेवकूफी से आगबबूला खिलजी ने दोनो राजकुमारियों के हाथ पैर बाँध कर उन्हे ऊँची पहाड़ी से फिंकवा दिया.
सन 1316 में मलिक काफूर की मौत से दुखी और निराश अलाउद्दिन खिलजी ड्रोपसी [एडीमा] से चल बसा , हालाँकि यह माना जाता है की उसकी हत्या उसके एक सेनापति मलिक नायाब ने करवाई
बुधवार, 6 मई 2009
शनिवार, 2 मई 2009
देश में धार्मिक आज़ादी और अमरीकी चालबाज़ी
यह खबर है की दुनिया का स्वयंघोषित थानेदार 'अंकल सॅम' अमेरिका भारत में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के मामलों से जुड़ी हुई समिति भेज रहा है. गौरतलब है की ऐसा हालिया घटित उड़ीसा में ईसाई विरोधी हिंसा के आरोप में भारत सरकार द्वारा दिए गये 'जवाब' की जाँच पड़ताल के लिए किया जा रहा है. इस रिपोर्ट के पहले अमरीका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े आयोग ने शुक्रवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है की भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के हनन के मामले विगत वर्षों में बढ़ते जा रहे हैं और बहुसंख्यक हिंदू जनता अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई जनता के प्रति बैर भाव रखती है. रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का भी उल्लेख किया गया है जो अमरेकी सरकार द्वारा प्रतिबंधित एक मात्र ऐसे भारतीय व्यक्ति हैं जिन्हे अमरीका आने से रोका गया है.
अमरीका बताए की क्या खुद उनके देश में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नही हुआ है? उल्लंघन भी ऐसा की एक प्रतिष्ठित हिंदू व्यक्ति श्री 'राजन ज़ेड' के अमरीकी सेनेट में हिंदू प्रार्थना करने पर पग्लाई क्रसेडर्स की भीड़ ने उनके साथ गली गलौज और धक्का मुक्की की. यह सब होता है अमरेकी सेनेट में जहाँ अमरीकी जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि बैठते हैं. इतनी बड़ी बात के होने के बावजूद किसी सेनेटर ने 'खेद' व्यक्त नही किया और सुरक्षाकर्मी क्रुसेडर्स को भर निकालने में ख़ासी मशक्कत करते नज़र आए.
हैरत होती है यह बात जानकार की अमरीका जैसे मुल्क के भारत में आख़िर क्या हित हैं? विगत वर्षों की हिंसा में आख़िर कितने अमरीकी पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में मारे गये हैं? क्यूँ नही अमरीका इसकी जाँच के लिए टीम भेजता ? क्या इसलिए की अमरेकी सैनिक और नागरिक आज इराक़ , आफ्गानिस्तान या पाकिस्तान में जाने से डरते हैं? यहाँ भारत में गोरी चमड़ी वाले फिरंगों के प्रति मानसिक गुलामों में खास आकर्षण हैं इसलिए इन अमरीकियों को यह बात अची तरह मालूम है की यहाँ इनकी अच्छी आवभगत होगी , और अगर यह लोग 3-4 नसीहत देंगे तो हमारे सेक्युलर स्लम डॉग्स इसे माई बाप का आदेश मानकर इस पर अमल करेंगे. शायद मगसेसे पुरस्कार वाले या नोबेल विश्व शांति पुरस्कार वाले इनके किए गये "कामों" के लिए 2-4 पुरस्कार भी दे दें.
यह जान कर गुस्सा आता है की आख़िर भारत सरकार , अमरीका को जवाबदेह क्यूँ है? क्या 10 जनपथ या राष्ट्रपति भवन ने अमरीकी राजदूत को तलब कर भारतीय छात्रों और भारतवंशियों के खिलाफ अमरीका में हुई हिंसा के प्रति विरोष जताया ? विरोध तो दूर हमारे महान विद्वान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साहब तो मौका मिलने पर ओबामा के आगे नतमस्तक होने का मौका नही छोड़ेंगे . धिक्कार है ऐसी राज्य व्यवस्था पर जो विदेशीयों के तलवे चाटने में मशगूल हो.
अमरीका में मौजूद भारतीय छात्रों से पूछे की वे अमरीका में कितना सुरक्षित महसूस करते हैं , शाम ढालने के बाद जगह जगह रंगे पुते हुए नशेड़ी मवालियों का जमावड़ा लग जाता है और किसी भी एशियाई व्यक्ति को देख कर वे टूट पड़ते हैं. यह नशेड़ी मवाली इतने ख़तरनाक होते हैं की पोलीस की पेट्रोल पार्टी भी इनसे भिड़ना उचित नही समझती.
कॉलेज कॅंपस में भी भारतीय सुरक्षित नही हैं हालिया घटनाओं में भारतीय विद्यार्थियों को जिस तरह निशाना बनाया गया है उसकी वजह से भारतीय विद्यार्थियों की अमरीका में आवक घाटी है. आज भारतीय छात्र अमरीका जाने के बजाय ऑस्ट्रेलिया जाना पसंद करते हैं , हालाँकि वहाँ भी हालात अच्छे नही हैं.
इस सब को देखते हुए क्या कोई भारत सरकार अपनी जाँच टीम इन मुल्कों में भेज कर पता कराएगी की विगत वर्षों में भारतीयों के खिलाफ हमले क्यों बढ़ रहे हैं ? और खुद अमरीकन सरकार इस सब से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है? कम से कम मुझे इस बात की उम्मीद बिल्कुल नही है की ऐसा कुछ होगा, क्यूंकी भारत सरकार का ट्रॅक रेकॉर्ड यही कहता है की वे विदेशो में रहने वाले भारतीयों के हितों के प्रति उदासीन हैं. विदेशों में स्थित भारतीय उच्चायोग में मंत्रियों के रिश्तेदार तैनात हैं या कुछ ऐसे लोग जो फोकट में मज़े कर रहे हैं. अनिवासी भारतीयों चाहे मरे या जिएं इन्हे इस से कुछ फराक नही पड़ता.
अमरीका बताए की क्या खुद उनके देश में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नही हुआ है? उल्लंघन भी ऐसा की एक प्रतिष्ठित हिंदू व्यक्ति श्री 'राजन ज़ेड' के अमरीकी सेनेट में हिंदू प्रार्थना करने पर पग्लाई क्रसेडर्स की भीड़ ने उनके साथ गली गलौज और धक्का मुक्की की. यह सब होता है अमरेकी सेनेट में जहाँ अमरीकी जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि बैठते हैं. इतनी बड़ी बात के होने के बावजूद किसी सेनेटर ने 'खेद' व्यक्त नही किया और सुरक्षाकर्मी क्रुसेडर्स को भर निकालने में ख़ासी मशक्कत करते नज़र आए.
हैरत होती है यह बात जानकार की अमरीका जैसे मुल्क के भारत में आख़िर क्या हित हैं? विगत वर्षों की हिंसा में आख़िर कितने अमरीकी पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में मारे गये हैं? क्यूँ नही अमरीका इसकी जाँच के लिए टीम भेजता ? क्या इसलिए की अमरेकी सैनिक और नागरिक आज इराक़ , आफ्गानिस्तान या पाकिस्तान में जाने से डरते हैं? यहाँ भारत में गोरी चमड़ी वाले फिरंगों के प्रति मानसिक गुलामों में खास आकर्षण हैं इसलिए इन अमरीकियों को यह बात अची तरह मालूम है की यहाँ इनकी अच्छी आवभगत होगी , और अगर यह लोग 3-4 नसीहत देंगे तो हमारे सेक्युलर स्लम डॉग्स इसे माई बाप का आदेश मानकर इस पर अमल करेंगे. शायद मगसेसे पुरस्कार वाले या नोबेल विश्व शांति पुरस्कार वाले इनके किए गये "कामों" के लिए 2-4 पुरस्कार भी दे दें.
यह जान कर गुस्सा आता है की आख़िर भारत सरकार , अमरीका को जवाबदेह क्यूँ है? क्या 10 जनपथ या राष्ट्रपति भवन ने अमरीकी राजदूत को तलब कर भारतीय छात्रों और भारतवंशियों के खिलाफ अमरीका में हुई हिंसा के प्रति विरोष जताया ? विरोध तो दूर हमारे महान विद्वान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साहब तो मौका मिलने पर ओबामा के आगे नतमस्तक होने का मौका नही छोड़ेंगे . धिक्कार है ऐसी राज्य व्यवस्था पर जो विदेशीयों के तलवे चाटने में मशगूल हो.
अमरीका में मौजूद भारतीय छात्रों से पूछे की वे अमरीका में कितना सुरक्षित महसूस करते हैं , शाम ढालने के बाद जगह जगह रंगे पुते हुए नशेड़ी मवालियों का जमावड़ा लग जाता है और किसी भी एशियाई व्यक्ति को देख कर वे टूट पड़ते हैं. यह नशेड़ी मवाली इतने ख़तरनाक होते हैं की पोलीस की पेट्रोल पार्टी भी इनसे भिड़ना उचित नही समझती.
कॉलेज कॅंपस में भी भारतीय सुरक्षित नही हैं हालिया घटनाओं में भारतीय विद्यार्थियों को जिस तरह निशाना बनाया गया है उसकी वजह से भारतीय विद्यार्थियों की अमरीका में आवक घाटी है. आज भारतीय छात्र अमरीका जाने के बजाय ऑस्ट्रेलिया जाना पसंद करते हैं , हालाँकि वहाँ भी हालात अच्छे नही हैं.
इस सब को देखते हुए क्या कोई भारत सरकार अपनी जाँच टीम इन मुल्कों में भेज कर पता कराएगी की विगत वर्षों में भारतीयों के खिलाफ हमले क्यों बढ़ रहे हैं ? और खुद अमरीकन सरकार इस सब से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है? कम से कम मुझे इस बात की उम्मीद बिल्कुल नही है की ऐसा कुछ होगा, क्यूंकी भारत सरकार का ट्रॅक रेकॉर्ड यही कहता है की वे विदेशो में रहने वाले भारतीयों के हितों के प्रति उदासीन हैं. विदेशों में स्थित भारतीय उच्चायोग में मंत्रियों के रिश्तेदार तैनात हैं या कुछ ऐसे लोग जो फोकट में मज़े कर रहे हैं. अनिवासी भारतीयों चाहे मरे या जिएं इन्हे इस से कुछ फराक नही पड़ता.
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