रविवार, 28 फ़रवरी 2010

एम. एफ. हुसैन की कतरि वतनियत और सेक्युलरिस्ट्स की शैतानियत

खबर है की मशहूर कलाकार और सेल्फ़ इंपोज़्ड एग्ज़ाइल में जी रहे एम एफ हुसैन साहब ने क़तर की वतनियत कबूल की हैं.

एम एफ हुसैन साहब अपने वक़्त के माशूर कलाकार रहे हैं और अपने आप में कला के इन्स्टिट्यूशन हैं जिन्हे हिन्दुस्तान सरकार 1955 पद्म श्री , 1973 पद्म भूषण और 1991 में पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से नवाज़ चुकी है.

हुसैन साहब फिल्मकार भी है माधुरी दीक्षित अभिनीत गज गामिनी और तब्बू अभिनीत मीनाक्षी अ टेल ऑफ थ्री सिटिज़ उनके द्वारा निर्देशित फिल्में हैं. हुसैन साहब राज्य सभा के सम्माननीय सदस्य भी रह चुके हैं.


सिर्फ़ हिन्दुस्तान में ही नही बल्के विदेश में भी हुसैन साहब की बहुत इज़्ज़त है , फॉर्ब्स मॅगज़ीन ने तो उन्हे पिकासो ऑफ ईस्ट तक कहा है , और साओ पोलो आर्ट फेस्टिवल में पाब्लो पिकासो के साथ स्पेशल गेस्ट बन कर जलसे में शारीक़ हुए. यही नही अभी हाल ही में उनकी एक पैंटिंग तकरीबन १.६ मिलियन डॉलर्स में बिकी.

[पूरी खबर यहाँ पढ़ें :

http://www.tribuneindia.com/2004/20040417/nation.htm#8]

जाहिर है जब ऐसे ऊँची हस्ती हिन्दुस्तान में पैदा हुई है तो हर हिन्दुस्तानी को उन पर नाज़ होना चाहिए...

लेकिन इस से बड़ा सवाल यह है कि इस मुल्क़ में जो हुसैन साहब को जो इज़्ज़त दी गयी क्या उसके वो वाकई हक़दार हैं ?

जिस मुल्क़ में वह रहे वहाँ की अवाम ने उनकी कला को सराहा , जो लोग उनमे राजा रवि वर्मा की छवि देखते हैं जो उनकी कला के क़द्रदान हैं क्या उनके मज़हब और धार्मिक मान्यताओं की इज़्ज़त इन एम एफ हुसैन साहब ने की?

इसका जवाब यक़ीनन '' में ही होगा , जो उदारवादी और तथाकथित लिबरलिज़म के नुमाईंदे एम एफ हुसैन का बचाव बड़े जोश के साथ हिंदू वादियों से कर रहे थे वो अब किस मुँह से एम एफ हुसैन साहब की क्रियेटिविटी और वतन परस्ती की बात कहेंगे?

मुझे एम एफ हुसैन से ज़्यादा उनके समर्थकों के लिए बुरा लग रहा है एम एफ हुसैन के क़तरि नागरिक बनते ही उनके समर्थन में दी गयीं सारी दलीलें बेकार हो जातीं हैं.

मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ इसके पीछे यह वजहें हैं.

1 .एम एफ हुसैन साहब का विरोध कुछ हिंदू और मुसलमान धार्मिक संगठन कर रहे हैं. कहने में भले ही यह बात थोड़ी अजीब लगे लेकिन सच्चाई यह है कि बहुत से मुसलमान भी उनके द्वारा हिंदू देवी देवताओं की नंगी पेंटिंग बनाने पर अपनी नाराज़गी जता चुके हैं.

2. एम एफ हुसैन साहब से मुसलमानों की नाराज़गी की वजह एक यह भी है की उनकी पिछले फिल्म मीनाक्षी : टेल ऑफ थ्री सिटीज़ के एक गाने नूर - उन -अला -नूर पर विवाद हुआ है . ऑल इंडिया उलेमा काउन्सिल ने एतराज़ जताते हुए इसे मज़हब के खिलाफ बताया . इस गाने के प्रोटेस्ट में अन्य मुस्लिम संस्थाएँ जैसे मिल्ली काउन्सिल, ऑल-इंडिया मुस्लिम काउन्सिल, रज़ा अकॅडमी, जमीयत-उल-उलेमा--हिंद और जमात--इस्लामी सड़क पर उतर आए थे और फिल्म को थियेटर्स से हटाने की माँग करने लगे

एम एफ हुसैन साहब पर आख़िरकार मज़हबी मुस्लिमों का दबाव काम कर गया और आख़िरकार उन्होने पूरी मुस्लिम क़ौम से माफी माँगते हुए तुरंत अपनी फिल्म थियेटर्स से उतारी.

[पूरी खबर यहाँ पढ़ें : http://ibnlive.in.com/news/masterstroke-husain-painting-fetches-16-

mn/61692-19.htm
]

3. यहाँ यह बात गौर करने लायक़ है की हुसैन साहब मुसलमानों के एतराज़ जताने पर बिना शर्त मुआफी माँगते हुए फिल्म हटाते हैं वहीं बहुसंख्यक हिंदुओं के बार बार कहने पर हिंदू देवी देवताओं की नंगी पेंटिंग बना कर हिंदुओं की धार्मिक भावनाएँ आहत करने के लिए कोई मुआफी नही माँगते.

4. इन्ही हिंदुओं के धर्मग्रंथों पर आधारित पेंटिंग बना कर इन्होने खूब कमाई की है. इनकी बनाई डिप्टीक, जो 1.6 मिलियन डॉलर्स में क्रिस्टी साऊथ एशियन आर्ट एंड मॉडर्न कंटेंपोररी आर्ट सेल में बिकी है वह असल में महाभारत पर आधारित है.

[पूरी खबर यहाँ पढ़ें :http://ibnlive.in.com/news/masterstroke-husain-painting-fetches-16-

mn/61692-19.html
]


5. हुसैन साहब जान और माल का ख़तरा होने के डर से दुबई में रह रहे हैं. उनके रिश्तेदारों और समर्थकों को यह ख़ौफ़ है की तथाकथित 'भगवा गुंडे' उन्हें मार ना डालें . जबकि असली बात तो यह है कि उनके विरोधी पूरे लोकतांत्रिक और क़ानूनी प्रक्रिया के साथ अपना विरोध जता रहे हैं.

पूरे हिन्दुस्तान में एम एफ हुसैन साहब के खिलाफ तक़रीबन 1250 कोर्ट केस पेंडिंग हैं. उन्ही से बचने के लिए वे गल्फ भाग गए. उनके बेटे के मुताबिक़ वह अब क़तर की नॅशनॅलिटी ले चुके हैं.



[पूरी खबर यहाँ पढ़ें :

http://timesofindia.indiatimes.com/entertainment/bollywood/news-

interviews/MF-Husain-accepts-Qatar-citizenship-says-

son/articleshow/5624157.cms
.]


यहाँ सवाल यह उठता है की कल यदि हिन्दुस्तान की कोई अदलत एम एफ हुसैन साहब को सज़ा सुनाती है तो क्या अदालत के हुक्म पर एम एफ हुसैन साहब वापिस हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाएँगे? क्या क़तर हिन्दुस्तान से अपने रिश्तों का तक़ाज़ा करते हुए उनका प्रत्यर्पण करेगा या पाकिस्तान की तरह उन पर अपने ही मुल्क़ में केस चलाने की बात कहेगा?

सनद रहे , गल्फ के सभी देशों के साथ हिन्दुस्तान की प्रत्यर्पण संधि नही है यही वजह है की हिन्दुस्तान के भगोड़े कैदी और वांटेड क्रिमिनल्स का अड्डा गल्फ है.

अनीस इब्राहिम के दुबई में पकड़े जाने पर क्बाइ ने दुबई पोलीस को एक्सट्रडिशन की रिक्वेस्ट भेजी थी जिसे ठुकराया गया और अनीस इब्राहिम को पाकिस्तान डिपोर्ट किया गया

[पढ़ें : http://www.expressindia.com/news/fullstory.php?newsid=19263]

इतने पर भी दुबई पुलिस के कलेजे को ठंडक न पहुचि तो उन्होने उल्टे भारत से दुबई में वांटेड क्रिमिनल्स के प्रत्यर्पण की माँग कर डाली और हिंदुस्तानियों को एक्सट्रडिशन के नियम समझाने लगे

[पढ़ें : http://timesofindia.indiatimes.com/world/Dubai-police-ask-India-to-

cooperate-on-extradition-issue/articleshow/37954386.cms
]


6. क़तर घोषित रूप से इस्लामिक राष्ट्र है साथ ही साथ वहाँ राज शाही चलती है, ये सबको मालूम है की इस्लाम में पेंटिंग , गाना बजाना ग़लत माना गया है , ऐसे में सवाल यह है की क्या उन्हे वहाँ वह आज़ादी मिलेगी जो उन्हे एक सेक्युलर हिन्दुस्तान में मिलती थी? और जिसकी चाहत में वह क़तर की वतनियत क़ुबूल कर रहें हैं?


7. एम एफ हुसैन साहब यदि हिंदू देवी देवताओं की ऐसी तस्वीर बनाते तब भी कम से कम यह समझा जाता की वह हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं

लेकिन एम एफ हुसैन साहब केवल इतने पर ही नही रुके. उन्होने भारत माता की नंगी पेंटिंग बनाई और अपनी गंदी सोच का मुज़ाहिरा किया .

भारत माता भारतीयों के लिए वही है जो ग्रेट ब्रिटन के लिए ब्रिटॅनिया
[ देखें : http://en.wikipedia.org/wiki/Britannia]


जर्मनी के लिए जरमेनिया [ देखें: http://en.wikipedia.org/wiki/Germania_%28personification%29] ,




रशिया के लिए मदर रशिया [देखें : http://en.wikipedia.org/wiki/Mother_Russia]



फ्रॅन्स के लिए मदर मेरियन [ देखें : http://en.wikipedia.org/wiki/Marianne],


और इंडोनेषिया के लिए आइबू पेरटीवी[देखें:http://en.wikipedia.org/wiki/Ibu_Pertiwi]



जाहिर है किसी भी मुल्क़ के लिए उसका "नॅशनल पर्सॉनिफिकेशन" काफ़ी मायने रखता है. मैं जानना चाहूँगा उन तमाम सेकुलरों से जो एम एफ हुसैन साहब की तरफ़दारी करते हैं [जिनमे काफ़ी मात्रा में बॉलीवुड के सेल्फ़ प्रोक्लेम्ड बुद्धिजीवी शामिल हैं] कि जब किसी बॉलीवुड आइटम गर्ल या एक्ट्रेस का चोरी से एम एम एस बनता है या तस्वीर मोर्फ की जाती है तो दोषी को पकड़वाने की पुरज़ोर कोशिश होती है और ऐसी घटिया मानसिकता के खिलाफ सभी एकजुट होते हैं , फिर हमारी क़ौमी शिनाख्त से खेल कर कोई सरफिरा इस तरह बदनाम कर रहा है तो उसकी खिलाफत करने में आप को साँप क्यों सूंघ जाता है? यह कैसी घटिया सोच है और कैसा घटिया आर्ट वर्क है और आप वाहियात लोग उनको हिन्दुस्तान की इज़्ज़त से इस तरह खेलने पर अप्रीशियेट कर भारत रत्न देने की माँग करते हैं.

हुसैन साहब जाएँ इस्लामिक मेजॉरिटी वाले इंडोनेषिया में और वहाँ आइबू पेरटीवी की ऐसी पेंटिंग बना कर देखें , वहाँ की सरकार उन्हें ज़हरीले कमोडो ड्रॅगन के साथ अंधे कुएँ में क़ैद कर देंगे या क़तर के राजपरिवार से ही ऐसी गुस्ताख़ी करने की सोच कर देखें क़तरि उनका वह हाल करेंगे की उनके फरिश्ते तक ये सबक याद रखेंगे

शीशे के तरह ये साफ बात है कि हुसैन साहब ने हिंदुओं के मज़हबी जसबात को चोट पहुचाई है लेकिन फिर भी फिल्ममेकर सईद मिर्ज़ा . महेश भट्ट , सोशियल एक्टिविस्ट नफीसा अली, थियेटर पर्सनॅलिटी एम के . रैना , मीडिया कर्मी प्रॅनाय रॉय , क्रिशन खन्ना , और शशि थरूर जैसे लोग उनको भारत रत्न देने की बात करते हैं. यह उनकी हिपोक्रेसी नही तो और क्या है????

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

वीर सावरकर

आज स्वातन्त्र्य वीर सावरकर की ४४ वीं पुण्य तिथि है। वीर सावरकर के नाम और काम से हम नौजवानों की पीढ़ी में शायद ही कोई वाक़िफ़ हो। जो उन्हे जानते भी होंगे वह उनके प्रखर हिंदुत्ववादी विचारों के लिए. किंतु वीर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद , बुद्धिवादी , कवि , लेखक और ओजस्वी वक़्ता थे . वह सावरकर ही थे जिन्होने सबसे पहले विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई. वीर सावरकर के नाम पर गाँधी हत्याकांड और तथाकथित मर्सी पेटिशन्स के चलते सेक्युलरिस्ट्स ने काफ़ी कीचड़ उछाला और गाँधी हत्याकांड में आरोपों को चलते उन्हें जेल में रहना पड़ा , किंतु इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे नही झुके और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा.
आइए आप और हम उनकी ४४ वी पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करें।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

पुणे ब्लास्ट और मीडिया की अमन की आशा

इतवार सुबह कंपनी के कॉलीग्स के साथ सुबह ट्रेकिंग पर भीमा शंकर जाना तय हुआ था अगली सुबह तड़के पुणे स्टेशन पर मीटिंग पॉइंट था इसलिए ऑफिस का दोस्त मेरे यहाँ रुका था, इसलिए फर्स्ट एड किट के ज़रूरी सामान खरीदने मार्केट जाना हुआ. खरीददारी कर हम जैसे ही घर जाने के लिए मुड़े , पिताजी का भोपाल से फ़ोन आ गया कि पुणे की बेकरी में धमाका हो गया है. मैने सोचा कि यूँ ही कोई छोटी मोटी घटना हुई होगी , घर पहुँचते हुए कुछ पुलिस की गाड़ियाँ तेज़ी से होलकर ब्रिड्ज की तरफ जाते हुए दिखीं लेकिन तब भी यह एहसास नहीं हुआ कि मामला गंभीर है.

घर पहुँच कर कल की तैयारी में लग गया फिर मेस से खाना खा कर जब घर ९ बजे लौट कर जब टीवी खोला तो दिल दहल गया. शाम साढ़े छ: बजे के क़रीब जर्मन बेकरी में ब्लास्ट हो गया और ८ लोग मारे गए ... कुछ सोचने समझने के पहले ही सेलफोन बजने लगा , खबर देखते देखते कॉल रिसीव किया पटना से दोस्त के घर से फ़ोन ख़ैरियत पूछने आया , दोस्त भी बदहवास सा बाल्कनी की तरफ भागा , और इधर मेरे फ़ोन पर भी कॉल आने शुरू हो गये .... जवाब देते देते मुझे यह एहसास हुआ कि हालात बहुत ही गंभीर हैं क्यूंकी मुझे भी घटना की ठीक ठीक जानकारी नही थी इसलिए जल्दी जल्दी अपना हेल्थ अपडेट देते हुए कॉल निबटाए. जाहिर है स्थिति को देखते हुए अगले दिन का प्रोग्राम रद्द हो गया.

आइए आपको पुणे शहर से अवगत करा दूं :-

१. पुणे महाराष्ट्र में मुंबई के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है जहाँ ऑटो मोबाइल , मॅन्यूफॅक्चरिंग और सॉफ्टवेर कंपनीज के चलते देश विदेश के कई लोग काम करते हैं.


२. पुणे अध्यात्मिक रूप से भी विश्व में मशहूर है , ओशो कम्यून , गणेश जी के दगड़ू सेठ और कसबा तथा अष्टविनायक मंदिर , माता का चतु: शृंगी मंदिर की वजह से श्रद्धालुओं की हमेशा यहाँ भीड़ रहती है.

३. सांस्कृतिक कार्यक्रम यहाँ साल भर चलते रहते हैं और गीत संगीत नाट्य और नृत्य कला की यहाँ सालों पुरानी परंपरा है.

४. सह्यद्रि पर्वत शृंखला और समुद्रि किनारों से नज़दीक़ी के चलते पुणे शहर के आस पास साइट सीयिंग की कई जगहें हैं जहाँ देश विदेश के पर्यटक आते हैं.

५. दुनिया भर में मशहूर सिंबी ( सिमबाइयोसिस) मेनेजमेंट इन्स्टिट्यूट , एफ टी आई आई , सी ओ ई पी , फ़र्गुसन कौलेज , भारती विद्या पीठ , डी वाई पाटिल इनस्टिट्यूट्स और पुणे विश्वविद्यालय होने के कारण देश विदेश के कोने कोने से छात्र यहाँ विभिन्न डिसिप्लिन में पढ़ने आते हैं .

६. मगर पट्टा , हिनजेवाडी , तलवडे , चाकन , कल्याणी नगर जैसे सेज में १०० के करीब देशी और एमेरिकन , फ्रेंच , ब्रिटिश , जर्मन तथा इजराइली कंपनियों के ऑफ्षोवर डेवलपमेंट सेंटर्स और मॅन्यूफॅक्चरिंग प्लॅंट्स हैं.

७. पुणे सेना के दक्षिणी कमांड का मुख्यालय भी है .

८. पुणे का अपना शताब्दियों पुराना गौरवशाली इतिहास है .

९. पुणे महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी है जैसे उत्तरप्रदेश की वाराणसी और मध्यप्रदेश का उज्जैन.

पुणे शायद भारत का अकेला शहर है जिसे विद्या का मायका कहा जाता है. जाहिर है इतनी सारी खूबियों के होते और यहाँ के कॉज़्मो पौलिटन कल्चर के चलते यह दुनिया भर के आई टी प्रेफेशनल्स , स्टूडेंट्स , कलाकारों और इतिहास प्रेमियों का पसंदीदा शहर है.

किंतु १३ फ़रवरी की शाम को दहशत का जो नंगा नाच कोरे गाँव पार्क की जर्मन बेकरी में हुआ उससे पुणे शहर की शान में बट्टा लग गया.

पुणे में जनरल अरुणकुमार वैद्य की हत्या के बाद यह पहली आतंकवादी कार्यवाही है. और इस लिहाज़ से खास है कि इंटेलीजेंस की पूरी इन्फर्मेशन महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय और मुख्यमंत्री को होने के बावजूद २६/११ के बाद देश मे हुई यह दूसरी बड़ी आतंकवादी घटना है . कुछ और मुद्दे हैं जो महाराष्ट्र सरकार के सुरक्षा संबंधी दावों की पोल खोलते हैं.

१. यह संयोग नही कि ऐसे हमले तभी होते हैं जब राज्य में गैर मराठी लोगों के खिलाफ राजनैतिक पार्टियाँ बयानबाज़ी करतीं हैं.

२। १३ तारीख पर आतंकवादी हमला करना आतंकवादियों की सोची समझी चाल लगती है , इससे पहले दिल्ली में १३ सितंबर २००८ , १३ मई २००८ को जयपुर और २६ जुलाई २००८ को अहमदाबाद में बम धमाके हुए जिसमे बड़ी संख्या में लोग मारे गए। २६ नवंबर २००८ को जो हमला हुआ उसमे खास बात यह है की २६ भी १३ का मल्टीपल है।


३. यह हमले उस समय हुए हैं जबकि एक हफ़्ता पहले कांग्रेसी युवराज मुंबई की यात्रा पर आए थे और उत्तर भारतीयों को यह संदेश दे गये थे कि उनके लिए सुरक्षित है. यह साफ़ है कि कांग्रेस का सुरक्षा संबंधी दावा कितना झूठा है.


४. यह २६ नवंबर २००८ के हमलों से इस मायने में समानता रखते हैं कि तब भी आतंकवादियों ने ज्यू स्यनोगॉग पर हमला किया था , जहाँ जर्मन बेकरी स्थित हैं वहाँ से ज्यू प्रार्थना स्थल पास ही में स्थित है.

५. यह हमला निश्चित रूप से विदेशियों पर केंद्रित था ताकि उन्हे भारत आने से डराया जा सके और भारत के पर्यटन व्यवसाय पर सीधी चोट की जा सके.


६. इसी फ़रवरी माह में भारत पाक वार्ता शुरू होनी है जिसे साबोटज करने के लिए यह धमाका किया गया .

७. इसी फ़रवरी के अंत में हॉकी विश्वकप भारत में खेला जाना है जिसमे विदेशी टीमें आएँगी , इसके साथ ही साथ आई पी एल -३ और बाद में कॉंमान वेल्थ खेल होने हैं , ऐसे में धमाके कर विदेशियों को डराना आतंकवादियों की सोची समझी साज़िश लगती है.


८. गृहमंत्री आर. आर. पाटिल जी के होते हुए यह दूसरा हमला है , उन्होने इतनी सावधानी ज़रूर बरती की हमले के बाद वे मीडिया से मुखातिब नही हुए , दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है.


९. यह धमाका उस समय हुआ है जब देश में लोग शाहरुख ख़ान और उसके कथित ' मुस्लिम विक्टिमाइज़ेशन' को दिखाती फिल्म से सहानुभूति जाता रहे थे.


१०. टाइम्स प्रायोजित 'अमन की आशा' कार्यक्रम को शुरू हुए दो हफ्ते नहीं बीते की अमन की आशाएं तार तार हो गयीं.


११. ख़ान की फिल्म के प्रदर्शन के लिए पूरे राज्य का पुलिसिया अमला सतर्क किया गया जिससे आतंकवादियों को यह नापाक हरकतें करने में कामयाबी मिली


१२। महाराष्ट्र में कांग्रेसी सरकार के १०० दिन पूरे होते होते यह हादसा हो गया , इससे पहले महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता प्रदेश में क़ानून व्यवस्था को ले कर अपनी पीठ आप थपथपा कर मुँह मियाँ मिट्ठू बन रहे थे.


१३. देश में जिस प्रकार ठाकरे के पाकिस्तान विरोध को लेकर मीडिया में जैसी फब्तियाँ कसी जा रही थी , अब सबकी बोलती बंद है 'माइ नेम इज़ ख़ान' को ५ में से ४ स्टार रेटिंग देने वाले टाइम्स समूह को अपनी अमन की आशा प्रोग्राम की दुर्गति देखी नही जा रही. १३ तारीख को ही प्रकाशित तमाम अख़बारों ने ठाकरे को देश का दुश्मन बताया था


साफ तौर पर यह इंटेलीजेंस फेल्यूर है गृहमंत्री चिदंबरम जी चाहे जितना कहें लेकिन जानकारी होने के बावजूद यदि राज्य सरकार उसे गंभीरता से लेने के बजाए एक फालतू फिल्म के प्रदर्शन को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना ले तो यह और कुछ नहीं सरकार का निकम्मा पन है.

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सुबह घर से ऑफिस जाते हुए इस बात का भरोसा नही है कि शाम को ज़िंदा लौटेंगे , अब से रेस्टौरेंट्स , पार्क , माल्टाइपलेक्स रिक्रियेशन सेंटर्स और सार्वजनिक जगहों पर जाते हुए कांप जातें हैं.

शायद डर का यह एहसास इस शहर के लिए नया है लेकिन अब इस एहसास के साथ जीने की आदत हमें डाल लेनी पड़ेगी.

सच तो यह है कि सरकार के अजेंडे में नागरिकों की सुरक्षा का कोई स्थान ही नही है आज संसद हमले को १० साल होने आएँ हैं अफ़ज़ल गुरु आज भी मज़े कर रहा है , मुंबई हमले को डेढ़ साल होने आए हैं मामला ज़रा भी आगे नही बढ़ा और भारत में सबसे सुरक्षित आज कोई आम भारतीय या मंत्री संतरी न हो कर पाकिस्तानी क़साब है जो हर सुनवाई में पचास दफे अपने बयान बदलता है और भारत का क़ानून उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार देता है.

आम भारतीय जनता को भी इससे कोई सरोकार नही है तभी बार बार होते आतंकवादी हमलों के बावजूद कांग्रेसी जीत कर लोकसभा में आते हैं . कभी कभी तो लगता है जैसे हमें अपने प्रशासन और सरकार को पश्चिमी देशों को आउट सोर्स कर देना चाहिए , क्योंकि चाहे जिस किसी की सरकार हो वह आम भारतीय को सुरक्षा की गारंटी तो दे ही नही सकती

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

ख़ान की खालिस नौटंकी

आजकल फिल्मों से ज़्यादा नौटंकियों की सक्रीनिंग में ज़्यादा भीड़ जुटती है और तमाम तरह की ब्यानबाज़ी के साथ साथ खूब लानात मलामत होती है.

अपने पिछले लेख "अबू आज़मी की मनसे नौटंकी" लिखते वक़्त मुझे इस बात का अंदेशा था कि मीडियावालों और कांग्रेसी नेताओं और सांस्कृतिक भाषाई झंडाबरदारों का मन नौटंकी से इतनी जल्दी भर नही सकता . और लीजिए महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने नयी नौटंकी का प्रदर्शन कर दिया.

पिछले शुक्रवार को कांग्रेसी युवराज महामहिम राहुल गाँधी साहब मुंबई तशरीफ़ लाए , मुंबई लोकल ट्रेन में भारी पुलिसिया पहरे में घाटकोपर से अंधेरी संधेरी सफ़र किया , पाँच कि। मी। की मामूली दूरी बजाए अपने पैरों से तय करने के सरकारी ऊडन खटोले में तय करी और बिना कुछ किए पूरी उत्तर भारतीय जनता के बीच हीरो बन गए!

यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि शिवसेना ने इनका विरोध किया और काले झंडे दिखाए , लेकिन मीडिया ने हमेशा की तरह अपने पगलाए अंदाज़ में जोशो ख़रोश के साथ इसे कांग्रेसी युवराज की जीत बताया.


खूब बयानबाज़ी हुई शिवसैनिकों - कांग्रेसियों की मार पिटाई हुई और हमेशा की तरह असल मुद्दों से ध्यान बँटाया गया.

इस शुक्रवार को नौटंकी का सीक्वल हुआ एक 'बिलो अवेरेज़ थर्ड रेट' ' सो कॉल्ड फील गुड' 'कॅंडी फ्लॉस' सिनिमाई विधा के जनक शाहरुख ख़ान और करण जोहर की फिल्म "माई नेम इज़ ख़ान" के ज़रिए.

माई नेम इज़ ख़ान कई मामलों में अलग है आइए इस पर नज़र डालें

१). माई नेम इज़ ख़ान धर्म प्रोडक्शन और गौरी ख़ान की पहली ऐसी फिल्म है जो साथ मिल कर बनाई गयी है.
२). यह धर्म प्रोडक्शन की पहली ऐसी 'बड़ी' फिल्म है जो इसके संस्थापक यश जोहर की मौत के बाद प्रदर्शित की जा रही है.
३). यह कभी अलविदा न कहना के बाद करण जोहर द्वारा निर्देशित पहली फिल्म है.
४). इस फिल्म के ज़रिए करण जोहर ४ सालों बाद किसी फिल्म का निर्देशन किया जा रहा है.
५). बिल्लू और पहेली के पिटने तथा वाहियात ओम शांति ओम और मैं हूँ ना जैसी फिल्मों के हिट होने बाद निर्माता गौरी ख़ान और अभिनेता शाहरुख ख़ान की यह ताज़ा फिल्म है.
६). काल और कुर्बान के पिटने के बाद यह फिल्म धर्म प्रोडक्शन की हालिया रिलीज़ फिल्म है.

७) कुर्बान के बाद धर्म प्रोडक्शन की यह दूसरी ऐसी फिल्म है जिसमे मुसलमानों को विक्टिमाइज़ कर जनता की हमदर्दी लूट कर पैसे कमाने की सोची गयी है.
८). मैं हूँ ना के बाद यह पहली ऐसी फिल्म है जिसकी रिलीज़ के पहले शाहरुख ख़ान ने पाकिस्तानी लोगों से अपनी हमदर्दी दिखाई है.
९). इस फिल्म के ज़रिए काजोल और जरीना वहाब जैसी वेट्रेन हीरोइनें फिल्मी दुनिया में वापसी कर रहीं है.
१०). वांटेड, कुर्बान और थ्री ईडियट्स के बाद यह हालिया रिलीज़ 'ख़ान' फिल्म है , जिससे फिल्म उद्योग को बड़ी उम्मीदें हैं.
११). कॅंडी फ्लॉस सिनेमाई विधा से हटकर यह पहली बार है जब करण जोहर कुछ नया करने जा रहे हैं.
१२). पिछले साल वांटेड और थ्री ईडियट हिट हुईं वहीं शाहरुख अभिनीत बिल्लू बुरी तरह पीटी.
१३). पिछले साल आई पी एल में कोलकाता नाइट राइडर के बुरी तरह हारने के बाद से यह शाहरुख ख़ान साहब की पहली प्रदर्शित फिल्म है.
१४). इस फिल्म के रिलीज़ के बाद जल्द ही आई पी एल शुरू होने जा रहा है.

जाहिर है जब ऐसी कुछ बातें आपके खिलाफ जा रहीं हो तो आप कुछ 'नया' करने की सोचते हैं इसी कारण फिल्म के प्रोड्यूसर्स ने काजोल और जरीन वहाब जैसी अभिनेत्रियों को लिया और फिल्म के प्रचार के लिए तमाम हत्कंडे अपनाए जैसे:-

१) नेवॉर्क एरपोर्ट पर शाहरुख की सुरक्षा जाँच के दौरान उनका डिटेन्षन और सुरक्षा कर्मियों द्वारा शाहरुख का 'ख़ान' नाम होने के कारण कथित रूप से दुर्व्यवहार.

२). शाहरुख का पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ हमदर्दी जाहिर करना.

३). जान बूझ कर मुस्लिम विक्टिमाइज़ेशन और दुनिया में कथित 'मुस्लिम पर्सिक्यूशन' को बढ़ावा दे कर राजनैतिक पार्टियों से पंगा लेना

४). फिल्म के रिलीज़ के ठीक कुछ दिन पहले शाहरुख का यह बताना कि लंडन के हेत्रोव एरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच के दौरान महिला सुरक्षा कर्मियों ने बॉडी स्कॅनर के ज़रिए उनकी नग्न तस्वीर उतारीं और इसे दुनिया भर में पब्लीश किया.

यह तरीके कुछ ऐसे हैं जिसके ज़रिए शाहरुख ख़ान साहब ने भोली भली जनता की हमदर्दी लूट कर रियाल लाइफ में 'हीरो' बनने की कोशिश की है जिसमे वह औंधे मुँह गिरे हैं.

कहना न होगा कि कुछ अख़बारों ने फिल्म देख कर ऐसे रिव्यू दिए हैं जिन्हे पढ़ कर वे पेड़ रिव्यू सरीखें लगते हैं.
कुछ अख़बारों ने यह लिखा है की फिल्म हाउस फूल चल रही है और फिल्म देखने के लिए लोग मरे जा रहे हैं.
कुछ अख़बार लिखते हैं की फिल्म ने सफलता के पिछले सारे रेकॉर्ड तोड़ डाले हैं और यह अभिनेता शाहरुख का नेता ठाकरे को करारा जवाब है.

मगर साहब ... ज़रा इन तथ्यों पर नज़र डालने की कृपा करें

). इस फिल्म का पहले दिन का कलेक्शन १००% बताया गया है लेकिन आप बॉलीवुड हंगामा या ग्लमशम जैसी फिल्म वेबसाइट देखें इसका पहले दिन का बॉक्स ऑफीस कलेक्शन मौजूद ही नही है. सच्चाई तो यह है कि शुक्रवार को शिवरात्रि की छुट्टी के बावजूद इसका कलेक्शन बमुश्क़िल ४०-४५% सदी है , जो किसी भी ख़ान फिल्म के लिहाज़ से काफ़ी खराब प्रदर्शन है.

२). यह फिल्म मुंबई में सभी सिनेमाघरों द्वारा दिखाए जाने का दावा किया जाता है , इस दावे की सच्चाई जानने के लिए मैने ऑनलाइन और फोन द्वारा बुकिंग करनी चाही --- पता लगा यह फिल्म कुछ सिनेमाघरों को छोड़ कर कहीं भी दिखाई नही जा रही.

३). पुणे औरंगाबाद और नासिक जैसे महाराष्ट्र के बड़े शहरों में यह न कल दिखाई गयी और न आज , बात की सच्चाई जानने के लिए आप खुद बिग सिनिमा और आई नॉक्स की वेबसाइट चेक करें .

४). फिल्म का म्यूज़िक पहले ही फ्लॉप हो चुका है. शंकर एहसान और लॉय जैसे मंझे हुए संगीतकारों के होते हुए भी फिल्म का संगीत कुछ खास नही रहा यही नही भारतीय गायकों के होते हुए फिल्म के प्रमुख गाने , शफाक़त अमानत अली ख़ान , अदनान समी और राहत फ़तेह अली ख़ान जैसे पाकिस्तानी गायकों से गवाए गये हैं जो आम तौर पर शंकर एहसान लॉय के लिए नही गाते.

५). फिल्म की पाइरेटेड डि वी डि पहले की बाज़ार में आ चुकी है जिसका प्रिंट पाकिस्तान और गल्फ में तैयार हुआ है. अंदाज़ा है कि पाइरेटेड प्रिंट्स फिल्म के कारोबार बार बुरा असर डालेंगे. फिल्म का संगीत पहले ही songs.pk नाम की पाकिस्तानी वेबसाइट इंटरनेट पर गैर क़ानूनी ढंग से जारी कर चुकी है तथा एफ एम पर इसके गीत पैसे दे कर बार बार बजाए जाते हैं ..... इस वजह से फिल्म का संगीत बाज़ार में खास नही बिका .

फिर यह फिल्म कैसे हिट हो गयी भैया ? यह सब क्या गोलमाल है? क्या यह पब्लिसिटी स्टंट नहीं? महाराष्ट्र की प्रमुख विपक्षी पार्टी सब काम काज छोड़ कर एक फालतू फिल्म का विरोध क्यूँ करेगी? सरकार ज़रूरी मुद्दों को छोड़ कर एक फिल्म की सक्रीनिंग के लिए पूरे राज्य की पुलिस फोर्स क्यूँ लगाएगी?

फिल्म का डिस्ट्रिब्यूशन फॉक्स सर्चलाइट पिक्चर्स कर रही है जिसकी पेरेंट कंपनी 20th सेंचुरी फॉक्स नामक जानी मानी एमेरिकन कंपनी है.

आई बात समझ में ? यह कंपनी भारतीय फिल्मोद्योग में अपने पैर जमाना चाहती है और इसका आगाज़ माइ नेम इज़ ख़ान के ज़रिए हो रहा है , जब हॉलीवुड की वॉरनर ब्रदर्स "चाँदनी चौक टू चाइना" का वितरण कर अपने हाथ जलाती है तो इसकी प्रतिद्वंदी कंपनी अपने बिज़नेस इंट्रेस्ट्स पर आँच क्यूँ आने देगी ????

जाहिर है जब फिल्म मुस्लिम दुनिया द्वारा झेले गए दुखों के बारे में बताती है और इसका विरोध एक हिंदू राष्ट्रवादी राजनैतिक पार्टी करती है तो विवाद पैदा होता है जिसके कारण सत्तारूढ़ पार्टी की ग़लत नीतियों और बढ़ती महँगाई से ध्यान हट कर फोकस में यह वाहियात फिल्म आती है , फिल्म को गुणवत्ता के चश्मे से नही देखा जाता बल्कि राजनैतिक पूर्वाग्रह के कारण देखा जाता है , लोगों में उत्सुकता बढ़ती है और अंतत: फिल्म हिट होने की
उम्मीद जगती है.

शिवसेना का विरोध का तरीका समझ नही आता यदि विरोध ही करना था तो बजाए सिनेमाघरों के बाहर चिल्ला चोट करने के वे दर्शकों में इसकी पाइरेटेड सी डी बाँटते जिससे फिल्म के बिजनेस पर सीधा फ़र्क़ पड़ता ... इससे उनकी इज़्ज़त भी रह जाती और फिल्म का विरोध भी हो जाता !

शाहरुख ख़ान का पाकिस्तानियों से हमदर्दी जताना और भी संदेह जगाता है यह दुनिया जानती है की पाकिस्तान भारतीय फिल्म और अन्य उत्पादों की पाइरसी का दुनिया में सबसे बड़ा अड्डा है लिहाज़ा पाकिस्तानियों को फिल्मों में या क्रिकेट टीम में शामिल करने से कहीं न कही देश के दुश्मनों के हाथ मज़बूत हो रहे हैं और भारतीय फिल्मोद्योग और संगीत तबाह हो रहा है.

एक फॉर्वर्डेड ई मैल के अनुसार पाकिस्तानी वेबसाइट songs.pk भारतीय गानों के पाइरेटेड वर्षन्स ऑनलाइन डाउनलोडिंग के लिए होस्ट करती है इसका एक दिन का रेवेन्यू १२ करोड़ रुपए हैं जिसे बतौर टॅक्स वह पाकिस्तानी सरकार को चुकाती है और भारतीय फिल्म कंपनी , और संगीत कंपनियों को सीधा चूना लगता है.

पाकिस्तान सरकार इस पैसे को भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगाती है , इस तरह पूरे भारतीय कलाकारों के वजूद पर संकट बन आया है.

यह दुख की बात है कि शाहरुख सहित तमाम फिल्मी हस्तियाँ पाइरसी के खिलाफ बोलती हैं लेकिन जाने अंजाने उन्हीं पाइरेट्स को मदद करतीं हैं
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