रविवार, 21 मार्च 2010

मीडिया का हिस्टीरिया और सिकुलर फिलिया

दोस्तों बरेली में पिछले तकरीबन २ हफ्तों से दंगे फ़साद चालू है और हैरत की बात है कि देश के मीडिया में बजाए इन संप्रादाईक दंगों को कवर करने के बजाए आई पी एल की खबरें और स्वयंभू साधु सन्यासियों के 'कथित' सेक्स टेप दिखाए जा रहें है. यह कोई पहला मौका नहीं है जब इतने ज़रूरी मुद्दे को दरकिनार कर फ़िज़ूल की खबरें बना कर देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान जनता को परोस रहें हैं. आपको सरकार के तलवे चाटने वाली मीडिया के 'मॉड्स ऑप्रॅंडी' से परिचय करा दूं :-


१. हिट एंड रन : सरकार के विरोधी पार्टी या विरोधी विचारधारा के लोगों या उसका समर्थन करने वाले लोगों पर तथ्य हीन आरोप करना , उनकी पब्लिक इमीज को बेसिर पैर की खबरें और बातें बना कर सॅबाटेज करना.

२. सरकारी वादों और मंत्रियों के बयानों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना और लोगों की उम्मीदें बढ़ाना.

३. पड़ोसी मुल्क़ और खास तौर से पाकिस्तान से 'अमन की आशा ' जता कर वहाँ के लोगों की हिमायत करना.

४. सरकार से विरोध जताने वाले नेता या पार्टी और विचारधारा से जुड़े लोगों की रॅली और भाषण में कही गयी बातों को तोड़ मरोड़ कर सन्दर्भ से काट कर विकृत रूप से कहना और ब्रॉडकेस्ट करना .

५. बढ़ती महँगाई , सूखे या नक्सली कार्यवाही को ज़्यादा तवज्जो देना , और फालतू की खबरें दिखा कर असल मुद्दों को दबा देना.

६. ठाकरे के अख़बार सामना में लिखे गये संपादकीय को राष्ट्रीय खबर बना कर थर्ड रेटेड जर्नलिस्ट्स के ज़रिए उनकी राय लेना.

७. किसी विवादास्पद मुद्दे पर ऑडाइयेन्स का एसएमएस पोल लेना और यदि जनता का फीडबॅक चॅनेल के हितों से टकराता है तो उसे बदल देना.

८. कसाब , हैडली , अफ़ज़ल जैसों की खबरें हर दूसरे हफ्ते टीवी पर दिखाना.

९. लेफ्ट , कॉंग्रेस और बॉलीवुड से जुड़ी हर छोटी बड़ी हस्ती की मौत पर उसकी मय्यत का सीधा प्रसारण कर उसके चौथे , तेरहवें या बरसी पर स्पेशल रिपोर्ट ब्रॉडकेस्ट करना वहीं विरोधी पार्टी या विचारधारा से जुड़े लोगों की मौत की खबर एक टिकर के ज़रिए प्रसारित करना.

१०. कोई दिखाने लायक खबर हो तो किसी हंसोड़ को पकड़ कर उसी के डबल मीनिंग वाले चुटकुले दिखा दिखा कर लोगों को टॉर्चर करना.

११. हिन्दुस्तान से भागे हुए भगोड़े नदीम सैफ़ी और मक़बूल फिदा हुसैन की तरफ़दारी करते हुए उनसे जुड़ी खबरें दिखाना.

१२. 'बिग फाइट' या 'मुक़ाबला' जैसे प्रोग्राम दिखाना जहाँ का एंकर बहुत ही बाइयस्ड हो और वहाँ की ऑडाइयेन्स पहले ही मॅनेज की गयी हो. इस ऑडाइयेन्स मैं आधे लोग तो कॉलीजियेट्स होते हैं जिन्हे असल मुद्दों की समझ नही होती या वह जिद्दी बूढ़े जो दिमाग़ की खिड़कियाँ बंद कर कुछ सुनना नही चाहते.

१३. अदालत के विचाराधीन मामलों पर अपने एक्सपर्ट्स के दवारा जिरह - बहस कराना लोगों से फीबक्क के ज़रिए राय लेना और आरोपियों पर मीडीया ट्राइयल चला कर उन्हे दोषी ठहराना.

१४. उल्टे सीधे कॅंपेन्स पब्लिक अवेर्नेस के बहाने चला कर लोगों को एसएमएस , मेल भेज कर मिसलीड करना और उनसे जुड़ी कॉन्फिडेन्षियल इन्फर्मेशन को अपने विभिन्न कॉंटेंट प्रोवाइडिंग वेबसाइट्स के ज़रिए जुटाना और उसे थर्ड पार्टी को बेचना.

तो आपने जाना कि क्या है आज के मीडिया की क्रेडिबिलिटी !!! क्या कहा साहब? मैं बाल की खाल निकाल रहा हूँ तो ज़रा इन तथ्यों पर नज़र डालिए , बाक़ायदा उदाहरणों के साथ समझाता हूँ.


१. ज़रा याद करिए २००१ के तहलका फेम तरुण तेजपाल साहब को , वेस्ट एंड कांड स्टिंग ऑपरेशन के बाद कैसे चौड़ा सीना ले कर मीडिया से मुखातिब हुआ करते थे , उनकी 'बहादुरी' के लिए बिज़्नेस वीक पत्रिका ने इन्हे "Amongst the 50 leaders at the forefront of change in Asia." की लिस्ट में रखा था , जाने आज कहाँ हैं!

स्रोत : http://en.wikipedia.org/wiki/Tarun_Tejpal_%28journalist%29#cite_note-0

२. कोबरा पोस्ट और आजतक के उन 'जाँबाज़' 'निडर' पत्रकारों को जिन्होने 'ऑपरेशन दुर्योधन' के ज़रिए 'भगवाइयों' की संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे खाने की 'काली करतूते' दुनिया के सामने उजागर की , यक़ीनन इस कांड में कुछ कांग्रेसी नेता भी पकड़े गये लेकिन यह कोई बच्चा भी बताएगा कि उन नेताओं को बलि का बकरा बनाया गया सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी क्रेडिबिलिटी बनाए रखने के लिए. न मालूम यह जाँबाज़ पत्रकार कहाँ गुम हो गये.

३. वह गुमनाम लोग जिन्होने संघ के संजय जोशी का स्टिंग ऑपरेशन किया था न जाने कहाँ गए??

४. वह गुमनाम लोग जिन्होने भाजपा के दिलीप सिंह जूदेव का स्टिंग ऑपरेशन किया आज कहाँ हैं??

५. सन २००० में क्रिकेट कि दुनिया में मचे मॅच फिक्सिंग के बवाल के बाद ही मीडिया बिरादरी में 'स्टिंग ऑपरेशन' के पोटेन्षियल पर चर्चा हुई और जिस तरह से मशहूर खिलाड़ी हँसी क्रॉंज की स्विकोरोक्ति के बाद उनकी छवि जिस बुरी तरह प्रभावित हुई उसने पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी.

जाहिर बात है कि इससे प्रेरित हो कर तहलका वालों ने मनोज प्रभाकर के साथ मिल स्टिंग ऑपरेशन कर कई बड़ी क्रिकेट सेलिब्रेटिस के ज़रिए 'सच उगलवाने' की कोशिश की जिसमे वह औंधे मुँह गिरे और उन्हे पत्रकार बिरादरी से कोई समर्थन नहीं मिला तेजपाल साहब यह कहते सुने गये : "Extraordinary stories call for Extraordinary methods "

फिर २००१ में रक्षा सौदों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए इन्होने स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमे भाजपा और समता पार्टी के नेता पकड़े गए. कुछ दिन बाद खुद तहलका वालों ने यह क़ुबूल किया कि स्टिंग ऑपरेशन के दौरान उन्होने वैश्याओं का लालच दिखा कर आर्मी अफसरों फुटेज चोरी से हासिल किए .

पूरी खबर यहाँ पढ़ें : http://news.indiamart.com/news-analysis/tehelka-and-media-et-5247.html

सन २००१ में संसद में संसद पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद भी यह मीडिया वाले विहिप के शीला पूजन की खबरें दिखा कर असलीमुद्दे को डाइल्यूट कर रहे थे.
कहना होगा मुशर्रफ के देश [पाकिस्तान] के नाम दिए गये संदेश [ तारीख जनवरी २००१ ] में उन्होने साफ तौर पर हिन्दुस्तान को धमकी दी थी कि यदि पाकिस्तान की तरफ नज़रें टेढ़ी की तो जंग हिन्दुस्तान की धरती पर लड़ी जाएगी और पाकिस्तानी फौज पूरी ताक़त के साथ हिन्दुस्तान पर टूट पड़ेंगी , इस बारे में हिन्दुस्तान किसी मुगालते में रहें

स्रोत : http://www.satp.org/satporgtp/countries/pakistan/document/papers/2002Jan12.htm


६. इस बात पर भी गौर किया जाए जब १९९९ - २००४ तक भाजपा सत्ता में थी , सरकार में मौजूद मंत्रियों और हिंदुत्व से ताल्लुक रखने वालों को स्टिंगेर्स ने निशाना बनाया और इसे 'समाज सेवा' बताया लेकिन जब से यू पी सरकार सत्ता में है एक भी खोजी स्टिंगर का इतना गुर्दा नही हुआ कि किसी कॅबिनेट मंत्री या सरकार में शामिल या उसे समर्थन दे रही किसी पार्टी के नेता का ख़ुफ़िया वीडियो बना सके. इस दौर में भी संजय जोशी प्रकरण और संसद में सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने के मामलों में विपक्ष और खास तौर से भाजपा नेताओं को निशाना बनाया गया.


७. जुलाई २००८ में जब 'कॅश फॉर वोट' कांड हुआ था तो सपा के द्वारा भाजपा के नेताओं को रिश्वत दिए गये थे , जिसे सी एन एन आई बी एन ने बाक़ायदा फिल्माया था. जब यह टेप जारी करने की बारी आई तो चॅनेल पीछे हट गया !

स्रोत : http://www.rediff.com/news/2008/jul/23upavote26.htm

सी एन एन आई बी एन की वेबसाइट टेप न दिखाने को कुछ इस तरह जायज़ ठहराती है -


"CNN-IBN thought it fit not to be drawn into the political battle and waited to tell the truth about the tapes after making its submissions before the Parliament panel.

CNN-IBN on August 12 appeared before a Parliament panel set up to investigate allegations made by the MPs.

"

स्रोत : http://ibnlive.in.com/news/amar-singh-gets-clean-chit-in-cashforvote-scam/75151-37.html?from=search-relatedstories



याने कि सी एन एन आई बी एन यह टेप्स दिखा कर 'पोलिटिकल वॉर' में नही पड़ना चाहता और संसदीय पॅनल में यह टेप सब्मिट करने के बाद इससे जुड़ी बातें करेगा.

मीडिया को इससे शर्मिंदगी नही हुई कि इन्हीं की बिरादरी का एक चॅनेल अपने हितों को बचाने के लिए सच्चाई सामने नहीं आने दे रहा !

अमर सिंह को क्लीन चिट मिल गयी लेकिन इस घटना के टेप दिखाने का फ़ैसला आज तक चॅनेल नही कर पाया

मज़े की बात यह है की स्वामी नित्यानंद के टेप अपने चॅनेल पर चलाने से पहले एक बार भी राजदीप सरदेसाई या आशुतोष जी ने उनके असली - नकली होने के बारे में नहीं सोचा.

कॅश फॉर वोट स्कॅंडल का टेप खुद सी एन एन आई बी एन के लोगों ने बनाया था तब भी इनको इन टेप्स के जेन्यूवन होने पर शक है !!! हैरत की बात है स्वामी नित्यानंद का वीडियो सन न्यूज़ ने जारी किया था और अपने लोगों से ज़्यादा भरोसा सी एन एन आई बी एन को सन न्यूज़ पर था इसलिए इस वीडियो की क्लिप्स सैंकड़ो बार सी एन एन आई बी एन और आई बी एन पर दिखाई गयीं.

होना तो यह चाहिए था कि राजदीप सरदेसाई और आशुतोष जी स्टिंग ऑपरेशन पर डेढ़ साल पहले लिए गये स्टॅंड पर कायम रहते और मामले की सच्चाई जानने तक नित्यानंद की क्लिप्स ब्रॉडकेस्ट करते.



यह दोगला रवैया नहीं तो और क्या है? यह मीडिया वाले नेताओं को वादाखिलाफी और अपनी बात पर कायम न होने के लिए कोसते हैं इनकी खुद की करनी नेताओं से किस मायने में अलग है?

जब भाजपा नेताओं ने सी एन एन आई बी एन के टेप नही दिखाए जाने पर रुपयों से भरे थैले बीच सदन में उलट दिए तो इससे 'संसद' और 'लोकतंत्र की गरिमा' भंग हो गई और तमाम सेकुलर अख़बारों के संपादकों ने बड़े बड़े संपादकीय लिख कर एन डी को संसद की गरिमा भंग करने पर जी भर के कोसा.

लेकिन साहब इसी हफ्ते जिन लोगों को राज्यसभा के सदस्यता के लिए राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया गया उनमे मणिशंकर अय्यर का नाम है , मणिशंकर अय्यर कोई कलाकार नही हैं फिर भी तमाम नियमों क़ायदे क़ानून को तक पर रख कर इन्हे राज्यसभा भेजा जा रहा है , यह फॅवुरिटिसम और पार्षियालिटी नहीं तो और क्या है?
स्रोत : http://timesofindia.indiatimes.com/india/Rajya-Sabha-nominations-raise-eyebrows/articleshow/5703483.cms


पत्रकार और मीडिया वालों का काम तो सरकार के बखिए उधेड़ना रहता है यहा तो पूरी पत्रकार और मीडिया बिरादरी उल्टा विपक्ष के पीछे हाथ धो कर पड़ गई.

अब मैं अपनी बात को तथ्यों के साथ प्रमाणित कर दूं कि मीडिया का बड़ा धड़ा कांग्रेस से हमदर्दी रखता है , कांग्रेस के राइवल भाजपा नेताओं की खबरें आउट ऑफ प्रपोर्षन उड़ाई जाती हैं और उनका नाम खराब किया जाता है .

१.ज़रा यह गूगल न्यूज़ का स्टास्टिकल ग्रॅफ देखें जहाँ 'संजय जोशी स्टिंग' के लिए सर्च रिज़ल्ट्स दिखाए जा रहें हैं . संजय जोशी का स्टिंग २००५ में हुआ था और तब हर चॅनेल पत्रिकाओं में इसी की चर्चा होती थी. बार ग्रॅफ यह दिखा रहा है कि किस साल तक इनकी खबरें मीडिया में चलीं . ग्रॅफ से साफ है कि २००५ से हाल के कुछ सालों तक मीडिया ने इसे तरजीह दी.








अब इसी तरह का न्यूज़ ग्रॅफ ज़रा कांग्रेस के अजीत जोगी के स्टिंग ऑपरेशन के लिए देखें इनका स्टिंग ऑपरेशन सन २००३ में हुआ था और इनका स्टिंग ऑपरेशन उसी दौरान हुआ था बार ग्रॅफ बताता है कि इनकी चर्चा अधिक नही हुई!






दिलीप सिंह जूदेव के स्टिंग से जुड़े न्यूज़ रिज़ल्ट्स देखते हैं , इनका स्टिंग २००३ के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले किया गया और इनसे जुड़ी खबरों को मीडिया ने २००३ से २००६ तक लगातार ३ सालों तक प्रकाशित किया फिर २००७ से २०१० तक जब आम चुनाव और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए तब उनकी खबरों को जोरों शोर से उठाया गया.



यही नहीं जब भी दंगे फ़साद होते हैं तब तब मीडिया हिंदुओं के जानो माल के नुकसान को ज़्यादा तरजीह नही देता वहीं किसी जगह यदि कोई मुस्लिम जानो माल का नुकसान होता है उसे तुरंत कवर स्टोरी बना कर प्राइम टाइम में दिखाता है या पहले पन्ने पर छापता है. नमूना यहाँ देखे

मिरज दंगों का न्यूज़ ग्रॅफ देखें [जहाँ हिंदुओं के जानो माल का नुकसान हुआ]



गोधरा दंगों का न्यूज़ ग्रॅफ देखें





जाहिर है गोधरा दंगों का विषय मीडिया का पसंदीदा है और ८ साल बीतने के बाद भी हर महीने अख़बारों में इस पर कुछ न कुछ छपता ही रहता है वहीं जिन दंगों में पीड़ित बहुसंख्यक हिंदू होते है उनसे जुड़े कोई खबर नही प्रकाशित होती.


ऐसा लगता है मीडिया ने अपनी कुछ फ़ेवरेट सेलिब्रेटिस की लिस्ट बनाई हैं इनसे जुड़ी हर खबर चटखारे ले ले कर दिखाई जाती है

११ अक्टोबर को जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन है और यह महज़ इत्तेफ़ाक़ की बात है कि इसी दिन अमिताभ बच्चन भी पैदा हुए , इस दिन प्रिंट एलेकट्रॉनिक मीडिया बच्चन साहब की तारीफ में कसीदे पढ़ने लग जाता है वहीं जे पी के योगदान को कोई याद नही रखता.

ठाकरे परिवार कोई विवादास्पद बयान दे दे तो उनकी ख़बरे हेडलाइन बनाई जाती है और हफ्तों चर्चा होती है , वहीं आज़मी के आतंकवादीयों से संबंध उजागर होने की सूरत में सिर्फ़ १-२ दिन खबर दिखाई जाती है और सख्ती से दबा दी जाती है.

अभी हाल ही में २७ फ़रवरी को वरिष्ठ गाँधीवादी और जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख का निधन हुआ लेकिन बहुत कम चॅनेल्स ने इस खबर पर रिपोर्ट दिखाई , ज़्यादातर चॅनेल्स ने टिकर पर खबर दिखा कर अपना पल्ला झाड़ लिया !

उससे बड़ी हैरत की बात यह है कि हरिद्वार में कुंभ मेला चल रहा है और विरले ही इस पर कोई रिपोर्ट टीवी चॅनेल पर दिखाई देती है , ज़्यादातर टीवी वाले 'धर्म' के नाम पर ज्योतिष और राशिफल आधारित प्रोग्राम दिखाते हैं या 'श्रीलंका में मौजूद सोने की लंका के प्रमाण'। कुंभ मेले को जिस तरह मीडिया में ब्लॅक आउट किया है वह शर्मनाक है.

यह गंभीर बात है कि खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया किस हद तक बाइयस्ड है. बाकी नेता अभिनेताओं का स्टिंग ऑपरेशन होता है और वो दुनिया के सामने एक्सपोज़ होते हैं बड़ा सवाल यह है कि मीडिया का स्टिंग ऑपरेशन कर उसकी कारगुज़ारी को कौन एक्सपोज़ करेगा?
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