गुरुवार, 12 नवंबर 2009

अबू आज़मी की मनसे "नौटंकी"


पिछले दिनो महाराष्ट्र की विधानसभा में जो नौटंकी हुई उसने कइयों के होश हिला कर रख दिए , वैसे मनसे के उम्मीदवारों और अबू आज़मी के समर्थकों के महाराष्ट्र में चुना जाना ऐसा था जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका फूटना. जिस दिन विधानसभा चुनावों के परिणाम आए तब ही लोगों में उत्सुकता थी की अबू आज़मी साहब और मनसे विधानसभा में क्या गुल खिलाएँगे.
कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के सरकार बनाने के ढुलमुल रवैये से सरकार बनने में करीब १५ दिन देरी हुई और बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया जाहिर है कांग्रेस को लोगों का ध्यान मुद्दों से हटा कर कोई नाटक तो करना ही था, इसी नौटंकी में शरीक हुई कांग्रेस की कभी उत्तर प्रदेश में सहयोगी रही समाजवादी पार्टी और महाराष्ट्र में कांग्रेस द्वारा पोषित एम एन एस.

साल २००७-०८ के आखरी दिनो में जो छठ पूजा का विरोध और राज ठाकरे, अमर सिंह , आज़मी , लालू , मुलायम में बयानबाज़ी हुई यह एक सोची समझी प्लॅनिंग थी. महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना के वोट काटना और कांग्रेसनित गठबंधन को मजबूत करना यही इसका मकसद था. भाषाई विवाद या आम जनता से इसका कोई लेना देना न था , खुद कांग्रेस कई दफे पर्दे के पीछे से मनसे को समर्थन देती नज़र आई. जिस कांग्रेस ने गोपाल कृष्ण गोखले , सावरकर और बाल गंगाधर तिलक जैसे तेजस्वी नेताओं को नज़रअंदाज़ किया , महाराष्ट्र राज्य की स्थापना में तमाम अड़ंगे लगाए गाँधी की हत्या के बाद हज़ारों मराठी लोगों के मकान दुकान जलाए आज वही कांग्रेसी दोगला खेल खेल रहे हैं.

अपने जीवन काल में कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष स्व. सीताराम केसरी कह चुके हैं कि मराठा मानुष कभी केंद्र में प्रधानमंत्री नहीं बन सकता , क्यूंकी आपस में मराठी व्यक्ति केकड़े की भाँति एक दूसरे के टाँग खींचते रहते हैं और कभी एकता नहीं दिखाते. कुछ हद तक यह बात सही है , लेकिन दुर्भाग्यवश केसरी जी प्रधानमंत्री बनने का अरमान अपने दिल ही में रखते हुए राम को प्यारे हो गये.

बात का रुख़ दोबारा मनसे और अबू आज़मी की तरफ ले आते हैं , शिसवेना के सामना अख़बार में लिखा था की मनसे और सपा के बीच नूरा कुश्ती चल रही है , दोनो ने विधानसभा को नाटकसभा में बनाने की कोई कसर नही छोड़ी है . हाई वोल्टेज ड्रामा खेल कर लोगों की भावनाएँ भड़का कर मीडीया में फुटेज लेते हुए अपना ब्रांड बना रहे हैं यह नामुराद नेता.

क़ानूनन कोई व्यक्ति या पार्टी किसी को बता नही सकती की उसे किस भाषा में बोलना चाहिए , लेकिन दूसरे राज्यों में रहने वाले को इतनी समझ होनी चाहिए कि जब आप किसी राज्य में २५ साल रहकर वहाँ की भाषा बोल नही पाते तो उनके नेता कैसे बन सकते हैं? अबू आज़मी के कथित तौर से हिन्दी में शपथ लेने से तो मराठी का अपमान हुआ और ही हिन्दी का सम्मान लेकिन बखेड़ा ज़रूर खड़ा हो गया !!!
अख़बारों में लिखे गए घटनाक्रम के अनुसार मनसे के रमेश वांजले और शिशिर शिंदे इन नेताओं ने अबू आज़मी के साथ हाथापाई की और एक झापड़ रसीद दिया , इसके बाद आज़मी साहब ने खूब बयानबाज़ी की मनसे को बुरा भला कहा. जब एक संवाददाता ने उनसे बाला साहब ठाकरे के बारे में पूछा तो उनके बारे में बेहद गैर ज़िम्मेदाराना बात आज़मी ने कही.

सोचने वाली बात यह है कि आज़मी किस हैसियत से ऐसी बयानबाज़ी कर रहे थे? पाठकों को याद दिला दूं सन २००४-०५ में स्टार न्यूज़ ने माफ़िया सरगना दाऊद इब्राहिम के भाई मुस्तक़िम की शादी का वीडीयो जारी किया था जहाँ सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबू आज़मी साहब चहकते हुए दाऊद से हाथ मिला रहे थे और शादी में ठुमके लगा रहे थे. बाद में जब स्टार न्यूज़ के प्रतिनिधि ने इनसे फ़ोन पर बात की तो ऑन द रेकॉर्ड यह बात कुबूली की वे शादी में मौजूद थे और दाऊद को अच्छी तरह जानते हैं , उन्होने यह भी दोहराया की शादी में शरीक होना गुनाह नही है और आगे भी वे ऐसी शादियों में शामिल होते रहेंगे. बात साफ है कि आज़मी दाऊद के बूते इतना उछल रहे हैं.

आइए इन्हीं अबू आज़मी साहब के अतीत के बारे में कुछ जानते हैं

१. हिन्दी भाषियों के 'सपाई' तारणहार अबू आज़मी साहब के बारे में ९ नवंबर १९९७ के द एशियन एज में खबर लिखी है कि तत्कालीन मुंबई पोलीस कमिशनररोनाल्ड मेंडोसाने हाइ कोर्ट में दिए एफाइडेविटमें आज़मी साहब के दाऊद इब्राहिम से संबंधो के बारे में खुल कर कहा है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

http://www.hvk.org/articles/1197/0045.html





२. यही आज़मी साहब बीते आम चुनावों में रिश्वतखोर मतदाताओं को पैसे बाँटते हुए चुनाव आयोग के हत्थे चढ़ गये. पूरी खबर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

http://www.indianexpress.com/news/abu-azmi-under-ec-scanner-for-cash-distribu/443729/



तो यह वजह है मुंबई और महाराष्ट्र के लोगों के आज़मी को तमाचा पड़ने पर खुश होने की . वो भली भाँति जानते हैं की आज़मी साहब किस खेत की मूली हैं , ९३ के दंगों में भी आज़मी साहब पर सवाल उठतेरहे हैं यह बात अलग है की सबूतों के अभाव में इनको बरी किया गया.

इन्ही मामलों से अपनी जान छुड़ाने के लिए आज़मी साहब ने यह नाटक रचा अरेबिक स्क्रिप्ट में लिखी हिन्दी शपथ पढ़ के मनसे वालों का थप्पड़ खा कर वे सस्ते में हीरो बन गए। इन्हीं आज़मी साहब के वालिद के बारे में कहा जाता है की उन्होने उत्तरप्रदेश में हिन्दी के खिलाफ उर्दू का समर्थन करते हुए आंदोलन किया था , अचानक इसी बाप के बेटे में हिन्दी के प्रति प्रेम कैसे जाग्रत हुआ? सब वोटों की राजनीति है आज़मी की नज़र महाराष्ट्र में बसे हिन्दी भाषियों के वोट पर नज़र है वहीं राज ठाकरे की मराठी वोटों पर। इन सबमें ज़रूरी मुद्दे दब गए हैं.

यह महज़ संयोग नहीं कि उत्तरप्रदेश में बर्बादी के कगार पर खड़ी सपा का नेता इस हालिया विवाद में पड़ा हो आमतौर पर समझदार नेता विवादों से दूर ही रहते हैं लेकिन आज़मी जैसे चालाक नेता विवादों से अपनी मार्केट वॅल्यू बनाते हैं , जानबूझ कर उन्होने बार बार यह ऐलान किया की वे हिन्दी में शपथ लेने वाले हैं , इधर मनसे वालों ने भी गुब्बारे को फुलाए रखने में कोई कसर छोड़ी , झूठी भाषाई अस्मिता के ज़रिए लोगों की भावनाएँ भड़का कर मनसे वालों ने चुनावों में सफलता हासिल की. यह जाहिर था की पहली बार चुन कर आए मनसे के विधायकों के पास कहने सुनने और करने के लिए कुछ खास नहीं था इसलिए अपनी मौजूदगी दर्ज़ करने के लिए सोची समझी साज़िश के तहत आज़मी से उलझ पड़े.

यक़ीनन यह पूरा नाटक मनसे और सपा द्वारा पोलिटिकल माइलएज हासिल करने के लिए खेला गया है.

आज महाराष्ट्र के मुंबई , थाणे ,पूना नासिक , नागपुर , औरंगाबाद , कोल्हापुर जैसे शहरों में ६-७ घंटे बिजली काटी जाती है , पानी सप्लाई में कटौती होती है , ज़रा सी बारिश में सड़कें स्वीमिंग पूल में तब्दील हो जाती हैं , गटर ओवरफ्लो हो कर बहने लगते हैं. फिर उचित साफ सफाई के अभाव में डेंगू , चिकुनगुनिया , मलेरिया और स्वाइन फ़्लू जैसी महामारियाँ फैलतीं हैं , दवाइयाँ नही होतीं और तिस पर लोग मरते हैं , लेकिन इतना होने पर भी सरकार को जवाबदेहि की चिंता नही होती , क्यूंकी बेवकूफ़ मतदाता ज़रूरी मुद्दों को छोड़ भाषाई अस्मिता के जंजाल में जकड़े हुए हैं. इन बेवकूफ़ मतदाताओं में यक़ीनन ज़्यादा तादात उन हिंदुओं की है जिनका सरकार द्वारा हिंदुओं को आतंकी ठहराए जाने पर खून नहीं खौलता , देवी देवताओं की अपमानजनक तस्वीरें बनाए जानेवालों के खिलाफ कहने के लिए मुँह नहीं चलता . सच है भारत की अधिकतर जनता आज भी कांग्रेस गाँधी नेहरू की मानसिक गुलामी में जी रही है , ऐसे आज़ाद भारत से तो ब्रिटिश राज अच्छा था कम से कम अराजकता या अंधेर तो न मची थी.

प्रांतवाद और क्षेत्रवाद समाज में जातिवाद से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है लेकिन . की बात यह है की . लोगों को जनता चुनती है , शायद जनता की ग़लती की यही सज़ा है कि ४ सालों तक उसके चुने हुए नेताओं को विधानसभा से निकाला गया है.
www.hamarivani.com