गुरुवार, 11 जून 2009

पेशवा बाजीराव की समाधि ख़तरे में







मित्रों, आपने मिलिटरी हिस्टरी और मध्य युगीन इतिहास का अध्ययन किया होगा तो निश्चित रूप से प्रमुख भारतीय योद्धाओं के बारे में पढ़ा होगा । माना जाता है की अँग्रेज़ जेनरल्स ने पानीपत की आखरी जंग से सीख ले कर नेपोलियन बोनापार्ट को हराया था । मशहूर वॉर सट्रॅटजिस्ट आज भी अमरीकी सैनिकों को पेशवा बाजीराव द्वारा पालखेड में निजाम के खिलाफ लड़े गए युद्ध में मराठा फौज की अपनाई गयी युद्धनीति सिखाते हैं. ब्रिटन के दिवंगत सेनाप्रमुख फील्ड मार्शल विसकाउंट मोंटगोमेरी जिन्होने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मन्स के दाँत खट्टे किए थे वे पेशवा बाजीराव से ख़ासे प्रभावित थे उनकी तारीफ वे अपनी किताब 'ए कन्साइस हिस्टरी ऑफ वॉरफेयर' में इन शब्दों में करते हैं "The Palkhed Campaign of 1727-28 in which Baji Rao I out-generalled Nizam-ul-Mulk , is a masterpiece of strategic mobility" - British Field Marshall Bernard Law Montgomery, The Concise History of Warfare, 132

इतना ही नही मशहूर अंग्रेज इतिहासकार सर रिचर्ड करनाक टेंपल अपनी पुस्तक में लिखते हैं "He died as he lived, in camp under canvas among his men, and he is remembered to this day among the Marathas as the fighting Peshwa and the incarnation of Hindu energy." - English historian Sir Richard Carnac Temple, Sivaji and the rise of the Mahrattas

भारतीय इतिहासकार श्री जादुनाथ सरकार कहते हैं "Bajirao was a heaven born cavalry leader. In the long and distinguished galaxy of Peshwas, Bajirao was unequalled for the daring and originality of his genius and the volume and value of his achievements" - Author Sir Jadunath Sarkar, foreword in V.G. Dighe's,Peshwa Bajirao I and Maratha Expansion

यूँ तो हिन्दुस्तान में वीरों बहादुरों की कमी नही हर सदी में महान हिंदू योद्धा पैदा होते रहें हैं जिन्होने बहुसंख्यक हिंदुओं को विदेशियों के जुल्मों से बचाया है. ऐसे ही एक धर्मवीर हैं पेशवा बाजीराव जिन्होने मुघलिया हुकूमत की चूलें हिला कर रख दीं कृष्णा से रावी तक , अटक से ले कर कटक तक और गुजरात से ले कर बंगाल तक उन्होने हिंदू साम्राज्य का झंडा बुलंद किया . तकरीबन 600-700 साल की गुलामी के बाद पहली दफे दिल्ली के तख्त को अपने काबू में करने वाले बाजीराव पहले हिंदू योद्धा थे. इन्होने अपनी जिंदगी में कुल 41 लड़ाइयाँ लड़ी और हर बार दुश्मन को बुरी तरह कुचला . इन्ही पेशवा बाजीराव की वजह से अफ़ग़ान लुटेरे और एयाशसुल्तान भारतीय अवाम का खून चूस न पाए . यही वो योद्धा थे जो मराठी हो कर भी महाराजा छत्रसाल की एक पुकार पर बुंदेलखंड की रक्षा करने बिना वक्त गँवाएँ हज़ार मील दौड़ पड़े थे और महाराजा छत्रसाल को मुस्लिम सरदार की क़ैद से छुड़ाया था. पेशवा बाजीराव शायद 18 वी शताब्दी के पहले ऐसे योद्धा थे जिन्होने भारत की गंगा जमुना तहज़ीब को अपने बर्ताव और रोशन ख्याली से चरितार्थ किया , उन्होने तमाम विरोध के बावजूद एक मुस्लिम महिला से शादी कर एक मिसाल कायम की. इन्ही के बेटे शमशेर बहादुर ने पानीपत की आखरी जंग में अब्दाली और नजीबुल्लाह के सिपाहियों से लड़ते हुए कुर्बानी दी.

लेकिन हमारी महान भारत सरकार जिसे हिंदू महापुरुषों और सांस्कृतिक विरासत से खास चिढ़ है आज इस दिवंगत योद्धा की समाधि को डुबोने पर आमादा है . पेशवा बाजीराव मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे स्थित रावेरखेड़ी े करीब , 28 एप्रिल सन 1740 में चल बसे थे. बाद में इसी जगह उनके बड़े बेटे नानासाहब पेशवा ने ग्वालियर संस्थान की देख रेख में उनकी समाधि बनवाई थी. गौरतलब है की सन 1925 से हर साल उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है , इस के लिए दुनिया भर के इतिहास प्रेमी यहाँ जमा होते हैं. बाजीराव पेशवा के सम्मान में उनकी पुण्यतिथि पर उनकी वीरता के गीत और क़िस्से सुनाए और गाए जाते हैं. सन 1940 में देश गुलाम होने के बावजूद उनकी 200 वी पुण्यतिथि बड़ी धूम धाम से मनाई गयी और लोगों ने उन्हे याद किया . हालाँकि ऐसा प्रतीत होता है आगे से शायद ही ऐसी शानदार प्रथा का पालन किया जाय क्यूंकी यह स्थान नर्मदा बाँध परियोजना के डूब क्षेत्र में आता है.

इंदिरा गाँधी सागर परियोजना के अंतर्गत आने वाले महेश्वर बाँध मध्यप्रदेश सरकार की म्हत्वकांक्षी परियोजना में से एक है , जो सन 2011 तक पूरा होने की संभावना है, किंतु इस समाधि के इससे पहले ही डूबने की आशंका जताई जा रही है इस समाधि को डूबने से बचाने के लिए नज़दीकी शहर इंदौर के निवासी जी तोड़ कोशिशें कर रहें हैं. प्रशासन ने डूब क्षेत्र में आने वाले घरों,मकानों और दुकानों पर निशान लगा दिए हैं. हालाँकि

समाधि स्थल और पास स्थित धर्मशाला भारतीय पुरातत्व विभाग की देख रेख में है और अब तक प्रशासन इसके डूबने की आशंकाओं पर चुप हैं किंतु इससे कई फुट उपर स्थित मकानों पर ख़तरे का निशान लगाया गया है. प्रशासन के अधिकारी हालाँकि दबी ज़ुबान में यह स्वीकार करते हैं की पानी समाधि की तीन फुट ऊँचाई तक ही आएगा , और पुरातत्व विभाग भी इस बात पर राज़ी हैं लेकिन यह हमे समझना होगा की बाढ़ आने की दशा में समाधि की क्या हालत होगी!इस सूरत में समाधि को स्थानांतरित करने का एकमात्र रास्ता बचता है किंतु पुरातत्व विभाग का यह मानना है की तकरीबन 250 वर्ष पुरानी इमारत होने की वजह से समाधि को हिलाना ठीक नही , पुरातत्व विभाग ने कॉंक्रीट की रीटेनिंग वॉल बनाने का सुझाव दिया है , किंतु ऐसा होने पर समाधि अपने मूलरुप में नही रहेगी. नर्मदा नदी का तेज बहाव इस स्थान को तकरीबन पिछले शताब्दी से काट रहा है , इस दशा में कॉंक्रीट की दीवार इस प्राचीन इमारत कितना बचा पाएगी इसमे शक है. स्थानीय लोग अभी भी आशावान हैं की इस समाधि को स्थानांतरित किया जाएगा. देखना यह है की सरकार जनभावनाओं का कितना सम्मान करती है.
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