गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

परिसीमन और दलों की शहरी मतदाताओ के प्रति उदासीनता

राजनैतिक पार्टियों को इस बात का अंदाज़ा नही है की इन लोकसभा चुनावों में उनके सिर पर कितना बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है. यह सर्वविदित है की तमाम राजनैतिक पार्टियों का जनाधार परिसीमन की गाज गिरने से विभिन्न चुनावी क्षेत्रों में बंट गया है फिर भी राजनेता इससे कोई सीख न लेते हुए अपने पुराने ढर्रे पर ही चुनावी वादे कर रहे हैं और शहरी मतदाताओं के हितों की अनदेखी कर रहे हैं. निर्वाचन आयोग के अनुसार देश के प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के कारण लोकसभा की 543 सीटों मे से 125 शहरी क्षेत्रों में आ गयीं हैं , इन शहरी क्षेत्रों में भी करीब 10-12 करोड़ ऐसे लोग हैं जो जीवन में पहली बार मत देंगे. ऐसे में इन नाव मतदाताओं के लिए कल्याणकारी योजना या वादे किस पार्टी ने किए हैं? आइए दश की कुछ प्रमुख पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में नज़र डालते हैं

सपा : यह पार्टी पहले से ही अपने घोषणा पत्र द्वारा मज़ाक का पात्र बन चुकी है. इन्होने कहा है की कंप्यूटर का गैर ज़रूरी इस्तेमाल बंद किया जाएगा और हार्वेस्टोर सहित तमाम कृषि यंत्रो के बढ़ते प्रचलन पर रोक लगाई जाएगी और अँग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों को बंद किया जाएगा. जाहिर है इस पार्टी ने शहरी मतदाताओं की अनदेखी की है , न कारों में छूट की बात की है न परिवहन सेवा , या उद्योग लगाने के बारे में , और तो और जहाँ देश का तेज़ी से औद्योगिकी कारण और शहरी कारण हो रहा है वहीं यह पार्टी देश को लालटेन युग में पहुचा रही है.

कॉंग्रेस : अपने लोकप्रिय प्रधान मंत्री की बदौलत यह पार्टी अति उत्साहित है किंतु इन्होने भी शहरी मतदाता की अनदेखी की है पिछले घोषणा पत्र में इन्होने 1 करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था किंतु वैश्विक मंदी के कारण 2 करोड़ लोग अपनी नौकरियाँ गँवा बैठे , 1 करोड़ में से 1 लाख को भी नौकरियाँ नही मिल पाँयी . हाल यह है की कॉंग्रेस के कई दिग्गज नेता परिसीमन के दर से अपना चुनावी क्षेत्र बदल दिए हैं. वे जानते हैं की शहरी मतदाता को आसानी से लुभाया नही जा सकता , जागो रे जैसे अभियान की बदौलत आज शहरी मतदाता भी बजाय घर बैठने के वोट डालने लाईनओ में लगता है.


भाजपा : इस पार्टी ने ज़रूर शहरी मतदाताओं को लुभाने के प्रयास किए हैं जैसे की 3 लाख रुपए सालाना आय वालों को आयकर में छूट देना , हालाँकि यह शहरी मतदाताओं के लिए नाकाफ़ी है. पार्टी का जनाधार शहरी मतदाताओं में ही है , किंतु विगत वर्षों में मतदाताओं की भाजपा के प्रति उम्मीद बढ़ गयी है जिसे पूरा करना इनके लिए टेढ़ी खीर है. आलम यह है की असली चुनावी मुद्दों को छोड़ नेता गान एक दूसरे पर छींटा काशी करते नज़र आ रहे हैं जो लोक तंत्र के लिए घातक है. किसानो को कर्ज़ माफी , और नये कर्ज़ 4% ब्याज पर देना तथा लाडली लक्ष्मी योजना लोगों दवारा पसंद की गयी हैं देखना यह है की इसका कितना फ़ायदा पार्टी को चुनावों में होता है.

बसपा : इस पार्टी का घोषणा पत्र दलितों और खास तौर से ग्रामीण क्षेत्र की जनता पर केंद्रित है . देखना है की अंबेडकर ग्रामीण विकास योजना मतदाताओं के बीच कितनी खरी उतरती है.

इन सभी पार्टियों के घोषणा पत्र से यह साफ है की इन्होने बड़े पैमानो पर शहरी जनता के हितों की अनदेखी की है जब की शहरी जनता ही पासा पलटने की क्षमता इस बार रखती है.
कल अपना नाम मतदाता सूची में देखते हुए मुझे यह देख बड़ी निराशा हुई की नये मतदाताओं के नाम , राजनैतिक पार्टियों के पास मौजूद मतदाता सूची से नदारद हैं , ऐसे सैकड़ो लोगों से मिला जो अपना नाम सूची में न देख कर झल्ला कर चुनाव आयोग को कोस कर चले गये! उनमे से कुछ ने हिम्मत कर के मतदान केंद्र गये होते तो देखते की वहाँ चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों के पास नयी मतदाता सूची होती है. वह तो भला हो उस घड़ी का जो में हिमत कर के मतदान केंद्र पहुँचा और वहाँ ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी को मेरा नाम मतदाता सूची में मिल गया , फिर क्या था पहचान पत्र दिखा कर मैं अपना बहुमूल्य मत , अपने नेता को डाल सका.
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